
उपेंद्र कुशवाहा (डिजाइन फोटो)
Upendra Kushwaha: बिहार विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय लोक मोर्चा के मुखिया उपेन्द्र कुशवाहा की बीसों उंगलियां घी में दिखाई दे रही थीं। एक एमएलसी पद और राज्यसभा की सीट उन्होंने सीट बंटवारे की शर्त में ही जीत ली थी। इसके बाद चुनाव में प्रदर्शन के दम पर एक मंत्रिपद हासिल करते हुए बेटे को नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनवा दिया।
कुशवाहा ने जब यह फैसला लिया तो बिहार के सियासी गलियारों में उन्हे राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी का तमगा मिल गया। लेकिन अब उनका यही दांव उल्टा पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। दो दिन पहले हुए भोज में पार्टी के चार में से तीन विधायक नहीं पहुंचे। चौथी विधायक खुद उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा हैं।
विधायकों के भोज में न पहुंचने के बाद राज्य में सियासी हड़कंप मच गया। चर्चा चली कि आरएलएम के एमएलए बीजेपी के संपर्क में हैं। कुशवाहा की पार्टी टूटने की कगार पर है, लेकिन इसके अगले दिन उपेन्द्र कुशवाहा मैदान में आए और दावा किया कि कोई भी विधायक नाराज नहीं है और पार्टी में सब ठीक चल रहा है।
कुशवाहा का ये दावा बरसाती बुलबुला निकला। क्योंकि शनिवार को पार्टी के विधायक और उपेंद्र कुशवाहा के पुराने सहयोगी रामेश्वर महतो ने खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। महतो ने दीपक प्रकाश को मंत्री बनाए जाने को उपेंद्र कुशवाहा का आत्मघाती कदम बताया। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष से इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की है।
नेतृत्व के निर्णय से नाराजगी के सवाल पर कहा है कि नाराज होना उनका अधिकार है। उन्होने कहा कि हमारे नेता परिवारवाद का विरोध करते थे, लेकिन एक झटके में पूरे परिवार को सेट कर लिया। ऐसे में वह अब यह सोच लें कि पार्टी बचाएंगे या परिवार?
सरकार गठन के बाद आरएलएम के किसी विधायक ने पहली बार जुबान खोली है। लेकिन महतो ने कहा कि 12 दिसम्बर को भी उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से अपनी भावना से अवगत करा दिया था। 25 दिसम्बर को महतो अपने सुप्रीमो की लिट्टी चोखा पार्टी से दूर रहे और दिल्ली में बीजेपी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन नवीन के साथ दिखे।
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गौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता देवी के अलावा पार्टी के तीन विधायक आनंद माधव, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह चुनाव जीते थे। मगर 20 नवम्बर को जब मंत्री बनने की बात आई तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक को आगे कर दिया, जिन्होंने चुनाव भी नहीं लड़ा था। कुशवाहा के इस फैसले के बाद से पार्टी में बगावती आग सुलग रही है।






