जस्टिस उज्ज्वल भुइयां(फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: देश के संवैधानिक भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने एक साहसिक और सोचने पर मजबूर करने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को जीवित रखने और संविधान की आत्मा को बनाए रखने के लिए हमें और ज्यादा बेबाक, निष्पक्ष और साहसी जजों की जरूरत है। यह टिप्पणी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओका के विदाई समारोह में दी, जिसका आयोजन महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल ने किया था।
जस्टिस भुयान ने कैरोलीन कैनेडी के उद्धरण का हवाला देते हुए कहा कि लोकतंत्र की नींव कानून का शासन है और इसे बचाने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जजों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होकर फैसले लेने चाहिए, तभी न्यायिक स्वतंत्रता की भावना बरकरार रह सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायमूर्ति ओका की न्यायिक यात्रा इसी स्वतंत्रता का प्रतीक रही है।
एनजेएसी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चर्चा
जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर बोलते हुए जस्टिस भुइयां ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि इस फैसले से तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली नाखुश थे, लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि चुने गए सांसदों के कानून को अगर अदालत असंवैधानिक मानती है, तो यह संविधान के अनुरूप ही है, न कि किसी तानाशाही का परिचायक।
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संविधान की रक्षा के लिए न्यायिक साहस जरूरी
जस्टिस भुइयां ने 1963 के पाकिस्तान के एक ऐतिहासिक मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि बेसिक स्ट्रक्चर की अवधारणा भारत से पहले पाकिस्तान में उभरी थी, लेकिन भारत ने इसे केशवानंद भारती केस के जरिए संवैधानिक पहचान दी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए विचारों के सम्मान, समझौते और समायोजन की आवश्यकता होती है, जैसा कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था। एनजेएसी अधिनियम कॉलेजियम प्रणाली पर जज ने कहा कि इस फैसले के बाद तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री नाराज हो गये थे, लेकिन फैलसे के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया गया।