विदुथलै चिरुथैगल काची (VCK) के नेता वन्नियारासु, फोटो- सोशल मीडिया
Viduthalai Chiruthaigal Katchi के नेता वन्नियारासु ने एक कार्यक्रम में कहा कि रामायण और महाभारत जैसी हिंदू महाकाव्य कथाएं समाज में ऑनर किलिंग की वैचारिक जड़ हैं। उनका तर्क था कि इन ग्रंथों की कुछ कथाएं जाति आधारित हिंसा और अंतरजातीय विवाहों के खिलाफ कठोर सोच को वैधता प्रदान करती हैं।
उन्होंने विशेष रूप से रामायण के उत्तर कांड का उदाहरण दिया। वन्नियारासु ने कहा कि उत्तर कांड में एक प्रसंग आता है, जिसमें एक ब्राह्मण अपने मृत बच्चे को लेकर राम के पास पहुंचता है और शासन की नाकामी का हवाला देता है। इसके बाद राम जंगल में जाते हैं और एक शूद्र तपस्वी शंबूक (कुछ जगहों पर संपुहन कहा गया) को उल्टा लटककर तप करते देखते हैं। राम उससे सवाल करते हैं कि निम्न जाति का होने के बावजूद वह तपस्या कैसे कर सकता है और फिर उसका वध कर देते हैं। कथा के अनुसार, शंबूक की हत्या के बाद ब्राह्मण का मृत बच्चा जीवित हो जाता है।
वन्नियारासु का कहना था कि इस तरह की कहानियां जातिवादी व्यवस्था को सही ठहराती हैं और यही विचारधारा आगे चलकर ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं को वैचारिक समर्थन देती है। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन धर्म और वर्णाश्रम व्यवस्था ऑनर किलिंग की मानसिकता की जड़ हैं, और डॉ. भीमराव अंबेडकर इसी विचारधारा को खत्म करना चाहते थे।
वन्नियारासु के इस बयान पर भाजपा ने तीखा पलटवार किया। तमिलनाडु बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कहा कि यह सनातन धर्म को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश है। उन्होंने सवाल उठाया कि रामायण का ऑनर किलिंग से क्या संबंध है? अन्नामलाई ने यह भी स्पष्ट किया कि वन्नियारासु जिस शंबूक प्रसंग का जिक्र कर रहे हैं, वह वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं है और न ही कंबन रामायण में है। यह बाद में जोड़ा गया हिस्सा माना जाता है, जिसकी प्रामाणिकता पर खुद विद्वानों में मतभेद हैं।
अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि डीएमके और उसके सहयोगी बार-बार सनातन धर्म को निशाना बनाते हैं और समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म हजारों वर्षों से हमलों का सामना करता आया है और आगे भी ऐसी राजनीति प्रेरित बयानबाजियों को सहन करेगा।
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दरअसल उत्तर कांड और शंबूक प्रसंग की प्रामाणिकता को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है। कुछ विद्वान इसे मूल रामायण का हिस्सा नहीं मानते और कहते हैं कि यह बाद में जातिवादी सोच को दर्शाने के लिए जोड़ा गया। वहीं कुछ इसे सामाजिक संदर्भ में लिखा गया प्रसंग मानते हैं। लेकिन राजनीतिक मंच से इस तरह की बयानबाजी ने धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही हलकों में विवाद को और गहरा दिया है।