(फोटो सोर्स सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)ने हिंडन नदी के प्रदूषण को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है। एनजीटी ने हिंडन नदी में प्रदूषण को लेकर मीडिया में आई खबरों का स्वतः संज्ञान लिया है। इन खबरों में कहा गया था कि इंडस्ट्रियल वेस्ट बहाए जाने और जलमल शोधन सुविधाओं की कमी के कारण हिंडन नदी लगातार प्रदूषित हो रही है। नदी में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण आसपास के क्षेत्रों में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य में पैदा हो रहे खतरों को लेकर भी NGT ने चिंता जाहिर की है।
ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की बेंच ने 27 नवंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘सहारनपुर में शिवालिक की पहाड़ियों से निकलने वाली और राज्य के 7 जिलों से होकर बहने वाली 400 किलोमीटर लंबी वर्षा आधारित हिंडन नदी अपने किनारे बसे 1.9 करोड़ लोगों की मदद करती है। लेकिन, इंडस्ट्रियल वेस्ट बहाए जाने से नदी जहरीली हो गई है। इसमें 357 औद्योगिक इकाइयों से रोजाना 72,170 किलोलीटर (केएलडी) इंडस्ट्रियल वेस्ट और 94.30 करोड़ लीटर (एमएलडी) घरेलू जलमल बहता है।”
मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि नदी में प्रदूषण की गंभीरता लगातार खराब होते पानी की गुणवत्ता से साफ पता चलती है। एनजीटी की पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी भी शामिल थे। एनजीटी ने नदी प्रदूषण के गंभीर प्रभावों के कारण नदी के किनारे बसे समुदायों में कैंसर, लिवर संबंधी समस्या, त्वचा संक्रमण, पीलिया, दांतों संबंधी समस्या और गुर्दे की पथरी के मामले बढ़ने पर चिंता भी जाहिर की।
मामले में सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में पर्यावरण संबंधी अध्ययनों का हवाला दिया गया है। इसमें नदी के पानी में हैवी मैटल्स की खतरनाक स्तर पर मौजूदगी का खुलासा हुआ है। इसमें सीसा तय सीमा से 179 गुना अधिक, कैडमियम तय सीमा से नौ गुना अधिक और क्रोमियम तय सीमा से 123 गुना अधिक शामिल हैं। एनजीटी ने कहा कि बच्चे इन प्रदूषकों के ज्यादा संवेदनशील होते हैं, उन्हें धातु के संपर्क में आने तथा निगलने के कारण होने वाले जोखिम का अधिक सामना करना पड़ता है।
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पीठ ने कहा कि यह मामला जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का संकेत देता है। पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि मीडिया रिपोर्ट में पर्यावरण संबंधी मानदंडों के अनुपालन से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं। इसमें राज्य के मुख्य सचिव, केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय कार्यालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पक्षकार या प्रतिवादी बनाया गया। इन सभी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)