
कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
MGNREGA Yojna: ऐसा कहा जा रहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ किया जा रहा है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने शनिवार को केंद्र सरकार के इस कथित फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि इस कदम से बिना किसी स्पष्ट फायदे के सरकारी खर्च का बोझ बेवजह बढ़ जाएगा।
विपक्ष का दावा है कि मनरेगा का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ किया जाएगा। प्रति वर्ष गारंटी वाले कार्य दिवसों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 की जाएगी। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना करने को मंजूरी दे दी है।
ग्रामीण परिवारों के लिए गारंटी वाले रोज़गार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने का फैसला लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर चर्चा की और नाम बदलने के साथ-साथ योजना के विस्तार को भी मंजूरी दी। अधिनियम में संशोधन के लिए संसद में एक बिल पेश किया जाएगा।
2014 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी नेताओं और प्रधानमंत्री मोदी ने मनरेगा योजना को यूपीए सरकार की नाकामियों का “जीता जागता स्मारक” कहा था। बीजेपी नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि यह योजना पैसे की बर्बादी है। दो साल तक बीजेपी ने मनरेगा योजना के कार्यान्वयन को लेकर कांग्रेस सरकार की आलोचना की, लेकिन अब बीजेपी इसे ‘राष्ट्रीय गौरव’ बता रही है।
मनरेगा योजना के तहत काम करते हुए ग्रामीण (सोर्स- सोशल मीडिया)
ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा अप्रशिक्षित और अकुशल मजदूरों का है जो गांवों में रहते हैं और रोजगार के लिए इस योजना पर निर्भर हैं। यह ग्रामीण आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए एक महत्वपूर्ण जरूरत है। कृषि के अलावा उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा मनरेगा से आता है। अगर यह योजना बंद हो जाती है तो बड़ी संख्या में लोग अपनी नौकरी खो देंगे। यही वजह है कि सरकार इस योजना को बंद नहीं करना चाहती। साथ ही इसके लिए बजट भी साल-दर-साल बढ़ाया गया है।
विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने मनरेगा की कड़ी आलोचना की थी। 4 नवंबर 2017 को नरेंद्र मोदी ने इसे “कांग्रेस पार्टी की 60 साल की नाकामियों का जीवित स्मारक” कहा था। तब बीजेपी ने सवाल उठाया था कि कांग्रेस शासन के दौरान इस योजना का फायदा मजदूरों तक क्यों नहीं पहुंच रहा था। जहां 100 दिन के रोजगार की गारंटी थी, वहीं मजदूरों को 40 दिन का काम भी नहीं मिल रहा था। यूपीए सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने में नाकाम रही।
बीजेपी लगातार यह चिंता जता रही थी कि सिर्फ 7-14 प्रतिशत परिवारों को ही पूरे 100 दिन का काम मिल रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने तब बजट आवंटन में कमी का मुद्दा उठाया था। जब बीजेपी सत्ता में आई तो उसने सुधारों का वादा किया। मोदी सरकार ने मजदूरों के खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर करने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना लागू की। उन्होंने दिए जाने वाले रोजगार के दिनों की संख्या भी बढ़ाई। अब ‘मनरेगा’ के काम के दिनों की संख्या को और बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार पर विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में ‘मनरेगा’ फंड को जानबूझकर रोकने और देरी करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। मुख्य रूप से यह दावा किया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में राजनीतिक बदले की भावना से फंड रोका जा रहा है, जिसके कारण लाखों मजदूरों की मजदूरी बकाया है।
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने मनरेगा को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर हमला किया है। दिसंबर 2025 में एक रैली में उन्होंने केंद्र सरकार के उस पत्र को फाड़ दिया जिसमें ‘मनरेगा’ के नए नियम थे। नरेंद्र मोदी सरकार पर पश्चिम बंगाल का बकाया, जिसका अनुमान 7,500 से 52,000 करोड़ रुपये है, जलन के कारण रोकने का आरोप लगाया गया है। केंद्र सरकार का दावा है कि फंड केवल उन्हीं राज्यों से रोका गया है जिन्होंने केंद्र के निर्देशों का पालन नहीं किया है।
आरोप है कि मजदूरों को एनएमएमएस और आधार पेमेंट जैसे गैर-जरूरी डिजिटल ऐप्स से बाहर रखा जा रहा है। केंद्र सरकार का बचाव यह है कि फंड रोकने का कारण राज्यों में अनियमितताएं और यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट न देना है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कोई राजनीतिक भेदभाव नहीं है और सभी राज्यों को समान फंडिंग मिलती है।
मनरेगा योजना के तहत कार्यरत ग्रामीण महिलाएं (सोर्स- सोशल मीडिया)
‘मनरेगा’ योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को हर साल 100 दिन के रोजगार की गारंटी मिलती है, लेकिन औसतन केवल 50 दिन का रोजगार दिया जा रहा है। 2024-25 में केवल 40.70 लाख परिवारों को 100 दिन का काम मिला, जबकि चालू वित्त वर्ष में अब तक केवल 6.74 लाख परिवार ही इस सीमा तक पहुंच पाए हैं। आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान लंबे समय से 100 दिन की सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। राज्यों को 100 दिन से ज्यादा रोजगार देने की अनुमति है, लेकिन फिलहाल उन्हें इसका खर्च खुद उठाना पड़ता है।
इस योजना को साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के रूप में लॉन्च किया गया था। जिसका लक्ष्य था ग्रामीण इलाकों में वहीं के लोगों के जरिए विकास कार्यों का क्रियान्वयन किया जाए, जिससे बेरोजगारी और पलायन को रोका जा सके। 2009 में यूपीए सरकार ने इसमें महात्मा गांधी का नाम जोड़कर ‘मनरेगा’ बनाया। अब एनडीए सरकार इसका नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कर रही है।
2025 और 2026 के बीच ‘मनरेगा’ के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जा रहे हैं। यह योजना शुरू होने के बाद से अब तक का सबसे ज़्यादा आवंटन है। मौजूदा फाइनेंशियल ईयर यानी 2025-26 में इस स्कीम के तहत 45,783 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में 290.60 करोड़ मानव-दिवस जेनरेट हुए हैं। इस स्कीम में 440.7 लाख महिलाओं के हिस्सा लेने से 2024-25 तक महिलाओं की भागीदारी 58.15 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
कोराना महामारी के दौरान यह स्कीम प्रवासी मजदूरों के लिए एक बड़ी राहत साबित हुई। जब काम और इंडस्ट्रीज बंद हो गए तो बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट गए जिससे ग्रामीण इलाकों में लोगों की भारी भीड़ हो गई। 2020 और 2021 के बीच रिकॉर्ड 7.55 करोड़ परिवारों को इस स्कीम से फायदा हुआ। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2029-30 तक इस स्कीम को जारी रखने के लिए 5.23 लाख करोड़ रुपये मांगे हैं।
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‘मनरेगा’ के ऑफिशियल पोर्टल के अनुसार, देश में रजिस्टर्ड मजदूरों की कुल संख्या लगभग 266.5 मिलियन है, जिनमें से लगभग 131.6 मिलियन महिलाएं हैं। हालांकि, एक्टिव मजदूरों की संख्या 136.0 मिलियन है, जिनमें से 71.2 मिलियन महिलाएं हैं। फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में, इस स्कीम ने 77.7 मिलियन लोगों को रोज़गार दिया, जो पिछले साल (2023-24) के 83.4 मिलियन से कम है। अब मजदूरों को ‘मनरेगा’ के तहत हर दिन 267.01 रुपये मिलते हैं।






