आरएसएस नेता कर रहे थे आपातकाल का विरोध (सोर्स: सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 25 जून 1975 में लगाए गए आपातकाल के बाद आरएसएस के हजारों कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था और उन्हें विभिन्न तरह की यातना दी गई थी। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि आपातकाल के दौरान 100 संघ कार्यकर्ताओं की मौत हुई। इनमें से कुछ की मौत जेल में हुई जबकि कुछ की बाहर। हमारे पांडुरंग क्षीरसागर भी उनमें से एक थे, जिनकी जेल में भयावह यातना के कारण मौत हुई।
आरएसएस के सुनील आंबेकर ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने को भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं पर एक ‘काला धब्बा’ करार दिया और कहा कि देश में ‘तानाशाही’ के उन 21 महीनों को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
सुनील आंबेकर ने बताया कि संगठन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, पीटा गया और उनमें से कई को हिरासत में ‘थर्ड डिग्री’ की यातना भी दी गई ताकि उन्हें सरकार का समर्थन करने और आपातकाल लागू करने के लिए मजबूर किया जा सके। अधिकारी यह भी चाहते थे कि देशव्यापी आंदोलन में भाग लेने वाले संघ नेताओं के नाम उजागर किए जाएं। लेकिन देश में लगातार चले जनांदोलन के कारण अंततः तानाशाही समाप्त हुई और देश में लोकतंत्र बहाल हुआ।
आरएसएस नेता सुनील आंबेकर (सोर्स: सोशल मीडिया)
आंबेकर ने कहा कि लोकतंत्र बचाने के लिए सभी स्वयंसेवकों ने देशव्यापी आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। आपातकाल की घोषणा के तुरंत बाद, तत्कालीन आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस को नागपुर में गिरफ्तार कर लिया गया और इंदिरा गांधी सरकार ने संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया।
आंबेकर ने बताया कि विभिन्न स्थानों पर कई प्रमुख संघ कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया। कुछ को 25 जून की रात को ही गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि अन्य को बाद में। उस समय वहां करीब 1300 संघ प्रचारक थे। उनमें से करीब 189 प्रचारकों को गिरफ्तार किया गया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल घोषणा की थी कि हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। इसी दिन 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई थी।
सुनील आंबेकर बताते है कि आरएसएस उस समय देश भर में लगभग 50,000 शाखाएं संचालित कर रही थी और उसने आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में अपनी ‘पूरी ताकत’ लगा दी थी। लोकतंत्र की बहाली सुनिश्चित करने के एक साझा लक्ष्य के साथ अन्य लोगों के साथ हाथ मिलाया गया था।
उन्होंने आलोचकों के इस दावे को ‘भ्रामक’ बताते हुए इस आरोप का खंडन किया कि तत्कालीन आरएसएस प्रमुख देवरस ने जेल से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर अपने संगठन पर प्रतिबंध हटाने और संघ कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा करने का अनुरोध किया था।
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आंबेकर ने कहा कि “देवरस ने जो पत्र लिखे थे, उनका उद्देश्य लोगों को संघर्ष की उस पीड़ा से बचाना था, जिसका सामना उन्हें आने वाले समय में करना था। महाभारत में भी ऐसा हुआ था। उन्होंने विनम्रता के साथ पत्र लिखे थे। लेकिन उनका स्पष्ट मानना था कि यदि पत्र-व्यवहार से काम न चले और तानाशाह इसे कमजोरी समझे, तो अगला हथियार सत्याग्रह है।” उन्होंने कहा और सत्याग्रह हुआ जिसमें 80,000 से एक लाख लोगों ने भाग लिया।