डीपफेक (फोटो सोर्स - सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार, 24 अक्टूबर को केंद्र को डीपफेक टेक्नोलॉजी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सरकार द्वारा किये गए उपायों पर वस्तु स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने कहा कि रिपोर्ट में सरकार के स्तर पर किए गए उपायों को रेखांकित किया जाना चाहिए और यह भी बताया जाए कि क्या समाधान सुलझाने के लिए कोई उच्च स्तरीय समिति होगी।
अदालत ने डीपफेक टेक्नोलॉजी के गैर-नियमन के खिलाफ दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह एक बहुत गंभीर मुद्दा” है जिससे प्राधिकारों द्वारा प्राथमिकता आधार पर निपटने की जरूरत है। पीठ ने आगे यह भी कहा कि आप क्या कर रहे हैं? दिन-ब-दिन डीपफेक के मामले बढ़ रहे हैं…मुझे खुशी है कि उद्योग के लोगों ने कुछ पहल शुरू की हैं और लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं।
डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके असली से मिलती-जुलती फर्जी वीडियो, ऑडियो और तस्वीरें बनाई जाती हैं। अदालत ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को निषिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि एआई लोगों की जरूरत है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि हमें टेक्नोलॉजी के नकारात्मक हिस्से को हटाकर सकारात्मक हिस्से को रखना होगा। अदालत ने विमानों में बम रखे होने की झूठी धमकियां बढ़ने का उल्लेख करते हुए जानना चाहा कि क्या सरकार ने इस संबंध में विशेषज्ञों की समिति गठित की है और यदि हां तो इसके सदस्य कौन हैं। पीठ ने इस बारे में और आगे कहा हम स्पष्ट जवाब चाहते हैं और डीपफेक के लिए एक गंभीर समिति जरूर होनी चाहिए।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय मुद्दे पर गौर कर रहा है। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी कि कई देशों ने इस मुद्दे पर कानून बनाया है और इस मामले में भारत काफी पीछे छूट गया है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर ‘डीपफेक’ महिलाओं से जुड़े होते हैं और प्राधिकारी मुद्दे का हल करने में अक्षम हैं। अदालत ने केंद्र को वस्तु स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दिया और सुनवाई 21 नवंबर के लिए निर्धारित कर दी।
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