चीफ जस्टिस संजीव खन्ना (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने अपने विदाई समारोह में न्यायपालिका को 20 वर्षों तक सेवा देने के बाद भावनात्मक अंदाज में विदा ली। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी खुद को जज की तरह नहीं देखा क्योंकि इस पद के प्रति उनके मन में गहरी श्रद्धा रही है। जज बनने का उनका सपना दिल्ली हाई कोर्ट से शुरू हुआ और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पूरा हुआ। सेवानिवृत्त होने के बाद वे अब ‘हेक्टिक’ काम नहीं करना चाहते लेकिन कानूनी क्षेत्र से जुड़े रहेंगे। उन्होंने कार्यकाल को लेकर संतोष जताया और न्याय के सिद्धांतों पर अपने विचार साझा किए।
जस्टिस संजीव खन्ना ने सेरेमोनियल बेंच से उठने के बाद प्रेस लाउंज में पत्रकारों से मुलाकात की, जहां उन्हें गुलदस्ते भेंट किए गए। बातचीत में उन्होंने कहा कि न्यायिक निर्णयों में हमेशा दो पहलू होते हैं तर्क और तथ्य और किसी भी फैसले में संतुलन आवश्यक होता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य भविष्य में न्यायिक सोच से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेना रहेगा, लेकिन वो अब अत्यधिक व्यस्त दिनचर्या नहीं अपनाना चाहते।
भविष्य की योजनाएं और कानूनी जुड़ाव
सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस संजीव खन्ना ने साफ किया कि वह अब भारी कार्यभार वाले जिम्मेदारियां नहीं लेंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह कानूनी जगत से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा लेते रहेंगे। उनके अनुसार, न्यायिक सोच और निर्णय प्रक्रिया में तथ्यों और तर्कों का संतुलन बेहद जरूरी होता है, और भविष्य तय करता है कि कौन सा निर्णय सही था।
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संवेदनशीलता और संतुलन का कार्यकाल
विदाई समारोह में जस्टिस बी.आर. गवई ने जस्टिस खन्ना को एक विनम्र और विचारशील न्यायाधीश बताया। उन्होंने दुष्यंत कुमार की कविता के माध्यम से उनके कार्यकाल की प्रशंसा की और कहा कि जस्टिस खन्ना का नेतृत्व न सिर्फ न्यायिक सुधारों के लिए प्रेरक रहा, बल्कि पूरी व्यवस्था को मानवीय दृष्टिकोण से देखने के लिए भी प्रेरित करता है। यह विदाई समारोह न्यायपालिका में सेवा की गंभीरता, संतुलन और गरिमा का प्रतीक बनकर सामने आया, जिसने न्याय की मूल भावना को फिर से रेखांकित किया।