
प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना (सौ. फ्रीपिक)
Plastic Bottle Water Disadvantage: भारत के ज्यादातर घरों में लोग पानी प्लास्टिक की बोतल में रखा जाता है और उसी का इस्तेमाल बार-बार करते हैं। प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने की आदत भले ही साधारण लगती है लेकिन इसके पीछे का असर बहुत बड़ा होता है। रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में अक्सर पानी हम प्लास्टिक की पैक्ड बोतल में खरीदते हैं या पुरानी बोतल को धोकर दोबारा इस्तेमाल करते हैं। पर्यावरण के साथ-साथ ये हमारी सेहत को भी नुकसान पहुंचाती है।
जब भी हम इन प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीते हैं तो माइक्रोप्लास्टिक पानी में पहुंच जाते हैं जो बहुत ही छोटे प्लास्टिक कण होते हैं। इनका साइज 5 मिमी से भी छोटा होता है। ये हमारे पानी के सोर्स में कई तरीकों से घुस जाते हैं। पुरानी प्लास्टिक के टूटने, कपड़ों के माइक्रोफाइबर बहने से और खुद बोतलों के टूटने या घिसने की वजह से यह पानी में मिल जाते हैं। आज के दौर में समुद्र ही नहीं बल्कि नदियां, झीलें और हवा में भी माइक्रोप्लास्टिक भरी है।
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जब हम प्लास्टिक की बोतल से पानी पीते हैं तो अनजाने में इन सूक्ष्म कणों को भी शरीर के अंदर ले लेते हैं। कई इंटरनेशनल रिसर्च में बताया गया है कि बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। जिनका सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। प्लास्टिक से जुड़े कुछ केमिकल शरीर में घुसकर और भी नुकसान करते हैं। जैसे हार्मोनल असंतुलन, मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध, प्रजनन क्षमता पर असर, कैंसर आदि।
जब हम रोजाना प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं तो यह हमारे पेट और आंतों को भी नुकसान पहुंचाती है। इससे गैस, अपच और पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट में इससे बचने के उपाय के बारे में बताया गया है। सबसे पहले हमें प्लास्टिक की बोतल को छोड़कर स्टील, ग्लास या बीपीए फ्री बोतलों का इस्तेमाल करना चाहिए। पानी में मौजूद प्रदूषक माइक्रोप्लास्टिक को निकालने के लिए वॉटर फिल्ट्रेशन सिस्टम का इस्तेमाल करना होगा। प्लास्टिक की बोतलें पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं। इन्हें इस्तेमाल के बाद पानी के सोर्स में न फेंके। क्योंकि यह पूरे इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचती है।






