सिकंदर फिल्म रिव्यू: कमजोर कहानी और ओवर कॉन्फिडेंस सिकंदर के मुकद्दर पर पड़ा भारी!
Sikandar Review in Hindi: ईद के मौके पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फिलहाल ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रही है, ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन यह फिल्म बड़ी हिट साबित होगी इसमें शंका है। क्योंकि फिल्म का स्क्रीनप्ले, फिल्म की कहानी और डायरेक्टर की कमजोरी फिल्म देखकर साफ तौर पर नजर आ रही है। फिल्म का पहला हाफ देखकर दर्शक सर पीट रहे हैं। फिल्म का रन टाइम जो 2 घंटा 35 मिनट का है यह भी कहानी के हिसाब से काफी लंबा लगता है। तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सलमान खान कि इस फिल्म से दर्शकों को काफी उम्मीद थी लेकिन फिल्म उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है।
फिल्म की कहानी: सिकंदर की कहानी में कोई नयापन नहीं है और कई किरदार जबरदस्ती रखे गए हैं, ऐसा लग रहा है। अच्छे कलाकारों की फिल्म में मौजूदगी के बावजूद कहानी में उनके किरदारों को डेवलप नहीं किया गया। यह कमी साफ तौर पर नजर आ रही है। फिल्म की कहानी राजकोट की जनता के दिलों पर राज करने वाले संजय (सलमान खान) की है जो राजकोट का राजा है और अपनी जनता की भलाई के लिए सब कुछ कुर्बान करने का जज्बा रखता है। लोग उसे फरिश्ता मानते हैं। सलमान खान का स्वैग फिल्म में दिखाई देता है। लेकिन कमजोर कहानी की वजह से कुछ वक्त के बाद सलमान खान की भूमिका उबाने लगते हैं और यही प्रक्रिया बाकी किरदारों के साथ भी होती है। साईश्री ने (रश्मिका मंदाना) संजय की पत्नी का किरदार निभाया है। विलेन की भूमिका में प्रधान (सत्यराज) हैं, जिसका बेटा का बेटा अर्जुन प्रधान एक महिला से बदतमीजी करता है, संजय अर्जुन प्रधान को महिला के पैरों में गिरकर माफी मांगने के लिए मजबूर कर देता है। इसके बाद प्रधान संजय से बदला लेने की प्लानिंग करता है और प्रतिशोध की इस कहानी में साईश्री की मौत हो जाती है और उस वक्त संजय को पता चलता है कि उसकी पत्नी गर्भवती थी, वह गहरे शोक में डूब जाता है। कहानी में ऑर्गन डोनेशन भी दिखाया गया है। साईश्री के अंगों को संजय दान कर देता है जिस वजह से वह अलग-अलग अंगों के जरिए जीवित रहती है। इसी बीच पंजाब में हुए ब्लास्ट की कहानी आती है, इसमें संजय को दोषी बनाने की कोशिश प्रधान करता है, कुल मिलाकर पूरी फिल्म की कहानी बदले पर आधारित है, लेकिन कड़ियों को जोड़ने में कहीं ना कहीं डायरेक्शन की कमी नजर आती है।
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फिल्म में संगीत ठीक-ठाक है, लेकिन सिनेमैटोग्राफी और स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर नजर आ रहे हैं। फिल्म को लेकर यह कहना गलत नहीं होगा कि एक्शन और इमोशंस को साथ में जोड़ने के लिए कुछ नए प्रयोग किए गए हैं लेकिन वह पूरी तरह से असफल नजर आ रहे हैं। फिल्म का पहला हाफ बेहद लंबा और जानबूझकर खींचा हुआ सा लगता है। सेकंड हाफ टाइट है और बहुत तेजी से चीजों को बताने की कोशिश की गई है, ऐसा जान पड़ता है। फिल्म का रन टाइम 2 घंटा 35 मिनट का है, जो दर्शकों को आखिर तक पहुंचने पर उबाऊ लगने लगता है। कलाकारों ने दमदार एक्टिंग की है, लेकिन फिर भी कमजोर कहानी, स्क्रीनप्ले और सिनेमैटोग्राफी की वजह से एक अच्छी खासी फिल्म स्क्रीन पर पूरी तरह से दम तोड़ते हुए नजर आती है। बदले की भावना में किसकी जीत होती है यह जानने के लिए फिल्म देखना जरूरी है। अगर आप सलमान खान के फैन हैं तो आप यह फिल्म देखने जा सकते हैं। लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका अंदाजा दर्शन पहले से ना लगा सके।