
जटाधारा रिव्यू: सोनाक्षी सिन्हा की 'धन पिशाचिनी' ने किया हैरान, एक रोमांचक अलौकिक यात्रा
कहानी: ‘जटाधरा’ कहानी है अंधकार के अंत की, किसी पौराणिक कथा का अहसास कराती ये फिल्म दिखाती है कि किस प्रकार जब अंधकार बढ़ जाता है तो उसका अंत करने ईश्वर स्वयं हमारी रक्षा करते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि एक गांव के घर में जमीन पर बेशकीमती सोने और जवाहरात गढ़े हैं लेकिन एक धनपिशाचिनी उसकी रक्षा कर रही है और उसके बदले वो लोगों की बलि मांगती हैं। उस घर में रहने वाली महिला लालच में आकर उस धनपिशाचिनी को बलि देती है लेकिन बलि पर्याप्त न होने पर वो उस महिला और वहां मौजूद सभी का अंत कर देती है। दूसरी ओर सुधीर बाबू के किरदार को शुरू से ही भूत प्रेत और आत्माओं की खोज करने का शौक है और वो उन जगहों पर जाकर अक्सर खोज किया करता है जहां उसे भूतों के होने की आशंका हो। किसी तरह वो उस गांव में पहुंच जाता है जहां धनपिशाचिनी का आतंक है। बाद में उसे अहसास होता है कि उसका जन्म इस पिशाचिनी का अंत करने के लिए हुआ है और महादेव की कृपा से वो उसका पूर्ण नहीं तो उसे दैवीय शक्तियों से बांधकर नियंत्रण में कर देता है। केवल एक फिल्म नहीं है—यह एक अनुष्ठान है, जो भय और भक्ति, तर्क और विश्वास के बीच की सीमाएं मिटा देता है।
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अभिनय: सुधीर बाबू ने शिवा के किरदार में बेहतरीन काम किया है—वो भूतों का एक ऐसी शिकारी है जो तर्क में विश्वास रखता है लेकिन धीरे-धीरे अलौकिक शक्तियों के आगे झुक जाता है। उनका परिवर्तन, एक संशयवादी से श्रद्धालु तक, फिल्म का मूल भाव बनता है। उनकी संयमित और भावनात्मक अदाकारी कई दृश्यों को अविस्मरणीय बना देती है। सोनाक्षी सिन्हा तेलुगु में अपने पहले किरदार धना पिशाची के रूप में बेहद प्रभावशाली हैं। उनके चेहरे की पीड़ा, आंखों की शक्ति, और एक त्रासदीपूर्ण देवी में उनका रूपांतरण—सब कुछ मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। वह भयभीत भी करती हैं, और दया भी जगाती हैं। दिव्या खोसला सितारा के रूप में गरिमा और सौंदर्य लाती हैं, जबकि शिल्पा शिरोडकर और इंदिरा कृष्णा कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ती हैं।
म्यूजिक: राजीव राज का संगीत फिल्म को एक आध्यात्मिक स्वर देता है। शास्त्रीय रागों और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक बीट्स का संगम फिल्म के भावों को और तीव्र करता है। “शिव स्तोत्रम” और ‘पल्लू लटके अगेन’ जैसे गीत न केवल सुंदर हैं, बल्कि कहानी के भीतर अर्थपूर्ण भी लगते हैं। दृश्य प्रभाव फिल्म को भव्य बनाते हैं, लेकिन कहानी पर हावी नहीं होते। धना पिशाची के दृश्य भयावह हैं, फिर भी सौंदर्यपूर्ण।
फाइनल टेक: ‘जटाधरा’ एक असामान्य प्रयोग है जहां पौराणिकता आधुनिकता से मिलती है, और भय भक्ति में बदल जाता है। समीर कल्याणी की सिनेमैटोग्राफी फिल्म की आत्मा है। रोशनी और अंधेरे के खेल से उन्होंने आस्था और संशय के प्रतीकों को जीवंत बना दिया है। मंदिर के अंदरूनी दृश्य, दीपक की लौ, धुएँ की लहरें, सब मिलकर एक ध्यान जैसा अनुभव देते हैं। वेणकट कल्याण और अभिषेक जैसवाल ने एक ऐसा सिनेमाई अनुभव रचा है जो देखने के बाद भी भीतर गूंजता रहता है। यह फिल्म केवल डराने के लिए नहीं बनी; यह आपको सोचने, महसूस करने और विश्वास करने पर मजबूर करती है। जी स्टूडियोज और प्रेरणा अरोड़ा के बैनर तले बनी यह फिल्म एक अलौकिक थ्रिलर होने के साथ-साथ एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। संक्षेप में, ‘जटाधरा’ एक रहस्यमय, दृश्य रूप से अद्भुत और आत्मिक रूप से झकझोर देने वाली यात्रा है—जहाँ देवत्व और अंधकार एक साथ नृत्य करते हैं।






