अंबाला में मंच पर सैलजा-हुड्डा का हाथ मिलवाते हुए राहुल गांधी (सोर्स-सोशल मीडिया)
चंडीगढ़ : हरियाणा चुनाव के बीच भूपेन्द्र हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच तनातनी की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनीं। मामला तो यहां तक आ पहुंचा था कि बीजेपी ने कुमारी सैलजा को पार्टी ज्वाइन करने तक का ऑफर दे दिया था। इस बीच सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी हरियाणा पहुंचे। यहां पर राहुल गांधी को कुमारी सैलजा और भूपेन्द्र हुड्डा का हाथ मिलवाते हुए देखा गया। जिसके बाद यह सवाल निकला कि हाथ तो मिल गए क्या दिल भी मिलेंगे?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को अंबाला में एक रैली को संबोधित किया। हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी की अटकलों के बीच उन्होंने बड़ा संदेश देने की कोशिश की। वह मंच पर आगे आए और भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा का हाथ पकड़कर रैली में उनका परिचय कराया। एक तरह से उन्होंने गुटबाजी की अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की। इसका एक वीडियो भी सामने आया है।
हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा के सहारे कांग्रेस को जोड़ने की कोशिश करते राहुल गांधी pic.twitter.com/n1SgKQgMxY
— दिव्यांशु (@divyanshu_iimc) September 30, 2024
इस दौरान जब सभी नेता हाथ मिलाकर एकता दिखा रहे थे, तब राहुल गांधी ने कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा से हाथ मिलाया। मंच पर प्रियंका गांधी नजर आईं। आपको बता दें कि कुमारी सैलजा की नाराजगी की चर्चाएं थीं। वह नजरअंदाज किए जाने से नाराज थीं। अपने करीबियों को टिकट न मिलने और हुड्डा खेमे के दबदबे से भी वह निराश थीं और कुछ दिनों तक चुनाव प्रचार से भी दूर रहीं।
हरियाणा में 20-22 फीसदी दलित मतदाता हैं और उन पर शैलजा का भी प्रभाव है। कुमारी सैलजा भी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन उन्हें भी टिकट नहीं दिया गया। वहीं, अब जब चुनाव में सिर्फ पांच दिन बचे हैं, तो माना जा रहा है कि कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, इसलिए राहुल गांधी ने मंच से एकजुटता का संदेश दिया है।
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बीजेपी बार-बार कुमारी सैलजा का मुद्दा उठा रही है और कांग्रेस पर गुटबाजी का आरोप लगा रही है। कांग्रेस का भी मानना है कि अगर दोनों नेताओं को साथ नहीं लाया गया तो चुनाव में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है। इससे पहले भी जब राहुल गांधी ने रैली की थी, तब भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा एक साथ मंच पर नजर आए थे।
हाथ मिलने से दिल मिलेंगे या नहीं इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ का कहना है दिल मिले या न मिलें कुर्सी ज़रूर मिल जाएगी। जबकि दूसरी तरफ कुछ विश्लेषक यह कहते हैं कि राजनीति कुर्सी और मौके का खेल है। इसमें जब किसी को अच्छा पद पाने का मौका मिलता है तो दिल मिलते हुए भी रास्ते अलग हो जाते हैं।
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