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नई दिल्ली: हरियाणा चुनाव के बीच कंगना रनौत का एक बयान आया जिससे कांग्रेस ने हाथों-हाथ लपक लिया। ठीक उसी तरह जैसे 2017 गुजरात चुनाव में मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को लेकर एक बयान दिया था। ठीक वैसे ही जैसे 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान सैम पित्रोदा ने जो ‘हुआ सो हुआ’ वाला बयान दिया था और बीजेपी ने उसे लपकते हुए मुद्दा बना लिया था। जिसका खामियाजा कांग्रेस को गुजरात में और लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा था।
अब ठीक उसी तरह हरियाणा चुनाव के बीच किसानों को लेकर दिए गए कंगना के बयान को कांग्रेस ने लपक लिया है। 2017 और 2019 में कांग्रेस ने अपने दोनों नेताओं के बयान से किनारा किया था। इस बार वैसे ही बीजेपी ने कंगना के बयान से किनारा कर लिया है। वहीं कंगना ने भी कहा कि वह अपने शब्द वापस लेती हैं। लेकिन तीर कमान से और बात जुबान से निकलने के बाद वापस कब होती है?
कंगना रनौत ने अपने ताजा बयान में कहा है कि किसानों से जुड़े तीनों कानून वापस आने चाहिए। कंगना यहीं नहीं रुकी उन्होंने आगे यह भी कहा कि खुद किसानों को इन कानूनों की मांग करनी चाहिए। जाहिर तौर पर कंगना का यह बयान किसानों को रास नहीं आएगा। साथ ही विपक्ष ने भी इसे हाथों-हाथ ले लिया है।
कंगना के बयान के बाद कांग्रेस ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए कहा कि ‘देश के 750 से ज्यादा किसान शहीद हुए, तब जाकर मोदी सरकार की नींद टूटी और ये काले कानून वापस हुए। अब BJP के सांसद फिर से इन कानून की वापसी का प्लान बना रहे हैं। कांग्रेस किसानों के साथ है. इन काले कानून की वापसी अब कभी नहीं होगी, चाहे नरेंद्र मोदी और उनके सांसद जितना जोर लगा लें।
कंगना के बयान को आधार बनाकर राहुल गांधी ने भी एक वीडियो जारी करते हुए पीएम मोदी को निशान पर लिया था। राहुल गांधी ने एक्स पर वीडियो पोस्ट करते हुए कहा था कि सरकार की नीति कौन तय कर रहा है? एक भाजपा सांसद या प्रधानमंत्री मोदी? 700 से ज़्यादा किसानों, खास कर हरियाणा और पंजाब के किसानों की शहादत ले कर भी भाजपा वालों का मन नहीं भरा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी कृपया इस बारे में स्पष्टीकरण दीजिए। क्या आप इस तरह के बयान के खिलाफ हैं या ऐसी कोई मंशा है? क्या आप फिर से काले कानून लागू करने जा रहे हैं?
कंगना ने यह बयान ऐसे समय में दिया है, जब हरियाणा में चुनाव हो रहे हैं। उनके बयान से भाजपा को नुकसान होता है या नहीं, यह तो नतीजे आने के बाद ही साफ होगा, लेकिन इतना तय है कि राज्य में किसान मतदाताओं की अच्छी संख्या है और वे किसी भी पार्टी का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
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चुनावों के बीच कुछ किसान यूनियनें भाजपा सरकार के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। वे किसानों के साथ अन्याय, बेरोजगारी और महंगाई को लेकर सरकार को घेर रही हैं। हाल ही में कुरुक्षेत्र में किसानों की महापंचायत हुई थी, जिसमें उन्होंने प्रदेश में भाजपा को सबक सिखाने और 3 अक्टूबर को देशभर में रेल की पटरियां जाम करने का ऐलान किया था।
मंडी से बीजेपी सांसद कंगना ने पहली बार ऐसा नहीं किया है इससे पहले भी वह कई बयान दे चुकी हैं जो पार्टी के लिए घातक साबित हुए हैं। यही वजह है कि उनके बयान को लेकर सियासी हल्कों में यह चर्चा हो रही है कि वह बीजेपी के लिए ‘मणिशंकर’ साबित हो सकती हैं!
कंगना रनौत पहले भी अपने बयानों से पार्टी की मुश्किलें बढ़ा चुकी हैं। उन्होंने कृषि बिल के खिलाफ किसानों के विरोध पर कहा था कि “किसानों के विरोध के नाम पर भारत में बांग्लादेश जैसी अराजकता हो सकती थी। बाहरी ताकतें अंदरूनी लोगों की मदद से हमें खत्म करने की साजिश रच रही हैं। अगर हमारे नेतृत्व में दूरदर्शिता नहीं होती तो वे सफल हो जाते।”
वही जाति जनगणन पर भी उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि तीन जातियां हैं- गरीब, किसान और महिला। इसके अलावा कोई चौथी जाति नहीं होनी चाहिए। रामनाथ कोविंद देश के दलित राष्ट्रपति बने, द्रौपदी मुर्मू देश की आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं। हम ऐसे उदाहरण क्यों नहीं देखते।
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उन्होंने कहा था कि “मैं आरक्षण पर अपनी पार्टी के रुख पर कायम हूं, लेकिन मुझे लगता है कि महिलाओं, किसानों और गरीबों की सुरक्षा के लिए काम करना जरूरी है। कंगना रनौत ने कहा, अगर हमें विकसित भारत की ओर बढ़ना है तो हमें गरीबों, महिलाओं और किसानों की बात करनी चाहिए, लेकिन अगर हमें देश को जलाना है, नफरत करनी है या आपस में लड़ना-मरना है तो जाति जनगणना होनी चाहिए।