बसपा सुप्रीमो मायावती (डिजाइन फोटो)
लखनऊ: मुल्क के सबसे बड़े सियासी सूबे में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है। जिसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने जद्दो-जेहद शुरू कर दी है। सभी दल अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर चुके हैं। बीजेपी इन चुनावों के जरिए लोकसभा चुनाव से कार्यकर्ताओं के झुके कंधे उठाने की कोशिश में लगी हुई है तो वहीं, सपा और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी को और कड़क करने के मूड में है। इस बीच बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी रणनीति जाहिर कर दी है। जिसके जरिए वह हाशिए पर पहुंच चुकी पार्टी में नई जान फूंकने की सोच रही हैं।
उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी सक्रिय है। रविवार को बैठक के बाद बसपा प्रमुख ने ब्राह्मण और पासी कार्ड खेला है। बसपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि जिन्हें प्रभारी बनाया जाता है, वे प्रत्याशी भी बनते हैं। सब कुछ ठीक रहा तो ये लोग चुनाव भी लड़ेंगे। विश्वनाथ पाल ने कहा कि बसपा का नारा है ‘जिसकी जितनी स्थिति हो, उसकी उतनी शर्त’।
अभी प्रत्याशी नहीं बल्कि प्रभारी घोषित किए जा रहे हैं। फूलपुर से शिवबरन पासी और मंझवा सीट से दीपक कुमार तिवारी उर्फ दीपू को प्रभारी बनाया गया है। इन दो प्रभारियों की घोषणा कर दी गई है। बाकी के बारे में जल्द ही जानकारी मिल जाएगी। अगर कोई विपरीत परिस्थिति नहीं हुई तो बहन मायावती प्रभारी को काम करने का मौका देती हैं और वह प्रत्याशी बन जाता है।
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बसपा के प्रभारियों के ऐलान के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी है कि बसपा पुराने फार्मूले के जरिए इस बार उपचुनाव में अपनी खोई होई प्रतिष्ठा वापस पाना चाह रही है। 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने यही फार्मूला अपनाया था। उन्होंने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ को लेकर चुनाव लड़ा था और उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही थी।
ब्राह्मणों की धुरी पर घूमेगा उपचुनाव का पहिया
अब कहा जा रहा है बसपा सुप्रीमो को फिर से उस फार्मूले की याद आ रही हैं। उधर सपा ने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर पहले ही ‘ब्राह्मण कार्ड’ खेल दिया है। जबकि ब्राह्मणों को बीजेपी का कोर वोटर कहा जाता है। इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में उपचुनाव का पहिया ब्राह्मणों की धुरी पर घूमता हुआ दिखाई दे रहा है।
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