विदर्भ के 'झाड़ीदार' जंगल वन भूमि घोषित। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि विदर्भ में 86,408 हेक्टेयर ‘झाड़ीदार’ जंगल की जमीन वन भूमि है। इस फैसले के साथ ही झाड़ीदार जंगल अब वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के दायरे में आ गए हैं। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय के 12 दिसंबर, 1996 के आदेश में कहा गया है कि झाड़ीदार भूमि को वन भूमि माना जाएगा।
यह मामला पूर्वी विदर्भ के नागपुर, वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिलों की भूमि से संबंधित है। पीठ ने कहा कि आधी सदी से भी अधिक समय से, “झाड़ीदार” क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की सेवा के लिए स्कूल, सरकारी कार्यालय, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र, शमशान जैसी विभिन्न सार्वजनिक सुविधाएँ झाड़ीदार भूमि पर मौजूद हैं। सवाल है कि क्या राज्यों के पुनर्गठन के दौरान अधिकारियों की लापरवाही के कारण पैदा हुई उलझन के कारण नागरिकों को इन सभी सुविधाओं से वंचित होना चाहिए?
फैसले में कहा गया है कि इन सभी सवालों का जवाब नकारात्मक में देना होगा। पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र राज्य को 12 दिसंबर, 1996 तक सक्षम अधिकारियों द्वारा आवंटित झाड़ीदार जंगल की जमीनों को ‘वन क्षेत्रों की सूची’ से बाहर करने के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत केंद्र से मंजूरी लेनी चाहिए। पीठ ने निर्देश दिया कि केंद्रीय समिति की पूर्व स्वीकृति से गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए “झाड़ीदार जंगल” की जमीनों के डायवर्जन के बारे में 3 महीने के भीतर केंद्र और महाराष्ट्र राज्य के बीच आपसी परामर्श किया जाए।
12 दिसंबर 1996 के बाद बुशलैंड की जमीन को दूसरे कामों के लिए क्यों आवंटित किया गया? कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को इन आवंटनों को करने वाले अधिकारियों की सूची उपलब्ध करानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की ‘प्रस्ताव प्रक्रिया’ तभी की जाएगी जब केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि ‘वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 3ए और 3बी के तहत संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है।’ कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को सभी सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए कि बुशलैंड पर कोई अतिक्रमण न हो।
अगर राज्य सरकार को वनरोपण के अलावा किसी और उद्देश्य के लिए इन जमीनों की जरूरत है, तो उसे वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत प्रस्ताव पेश करना चाहिए। अदालत ने आदेश दिया कि 25 अक्टूबर, 1980 के बाद वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए आवंटित झाड़ीदार भूमि पर सभी अतिक्रमण 2 साल के भीतर हटा दिए जाएं। अदालत ने अतिक्रमण हटाने के लिए प्रत्येक जिले में एक उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, पुलिस उपाधीक्षक, सहायक वन संरक्षक और तालुका भूमि राजस्व निरीक्षक को शामिल करते हुए एक विशेष टास्क फोर्स के गठन का आदेश दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इन अधिकारियों को केवल इसी उद्देश्य के लिए नियुक्त किया जाएगा और उन्हें कोई अन्य कार्य नहीं सौंपा जाएगा।