वित्त मंत्रालय (सौजन्य : सोशल मीडिया)
पिछले 1 हफ्ते से ईरान और इजराइल के बीच में युद्ध जारी है। ये दोनों ही देश भारत के ट्रेड पार्टनर हैं। जिससे ये बात साफ हो जाती है कि इस युद्ध का सीधा असर भारत के कारोबार पर भी होता हुआ नजर आ रहा है।
जिसको ध्यान में रखते हुए वाणिज्य मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को एक अहम मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें ईरान और इजराइल के बीच चलने वाले टेंशन का भारत के फॉरेन ट्रेड पर क्या असर हो सकता है, इसकी समीक्षा की जाने वाली है। इस मीटिंग में शिपिंग कंपनियों, कंटेनर ऑपरेटर्स, एक्सपोर्टर्स और कई अलग-अलग विभागों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाने वाला है।
एक्सपोर्टर्स का मानना है कि अगर ये युद्ध और ज्यादा आगे बढ़ता है, तो इसके कारण ग्लोबल ट्रेड पर असर पड़ सकता है और साथ ही हवाई और समुद्री मालभाड़े की दरें में बढ़त हो सकती है। इसके साथ ही ये आशंका जतायी जा रही है कि इससे हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य और रेड सी से कमर्शियल जहाजों की आवाजादी रूक सकती है।
गौरतलब है कि भारत के लगभग 2/3 कच्चे तेल और आधे से ज्यादा एलएनजी इंपोर्ट इसी स्ट्रेट से होकर आते हैं, जिसे ईरान ने बंद करने की धमकी दी है। ये समुद्री रास्ता सिर्फ 21 मील चौड़ा और ग्लोबल ऑयल ट्रेड का लगभग 5वां हिस्सा यहीं से होकर गुजरता है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव यानी जीटीआरआई के अनुसार, अगर यहां किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई या रास्ता बंद होता है, तो इससे ऑयल प्राइस, शिपिंग कॉस्ट और इंश्योरेंस प्रीमियम में भारी बढ़त हो सकती है, जिससे भारत में महंगाई बढ़ने की आशंका है और साथ ही रुपये पर भी दबाव पड़ेगा और सरकार की फाइनेंशियल प्लानिंग में परेशानी आ सकती है।
भारत और यूरोप के बीच में 80 प्रतिशतस मर्चेंडाइज ट्रेड रेड सी के जरिए होता है और अमेरिका के साथ भी भारी ट्रेड इसी रूट से होता है। ये दोनों सेक्टर भारत के टोटल एक्सपोर्ट में 34 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। रेड सी से वर्ल्ड का 30 प्रतिशत कंटेनर ट्रैफिक और 12 प्रतिशत ग्लोबल ट्रेड होता है, जो इस सेक्टर की अहमियत को दिखाता है।
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आपको बता दें कि भारत का इजराइल को एक्सपोर्ट 2023-24 में 4.5 अरब डॉलर से घटकर 2024-25 में 2.1 अरब डॉलर पर आ गया है। साथ ही इजराइल से इंपोर्ट भी 2 अरब डॉलरे से नीचे गिरकर 1.6 अरब डॉलर पर रह गया है।