ई-कॉमर्स (डिजाइन फोटो)
यदि आप ऑनलाइन शॉपिंग करते है और आप ये सोचते हैं कि वेबसाइट ने आपको ये फैसला लेने के लिए मजबूर कर दिया है कि जैसे कि जल्दी करो, ऑफर जल्द ही खत्म हो रहा है या फिर बिना एक्सट्रा चार्ज बताए चुपचाप कीमत बढ़ा दी हो तो आप शायद डार्क पैटर्न्स का शिकार हो चुके हैं। अब सरकार ने इसको लेकर सख्त कदम उठाया है।
डार्क पैटर्न्स यानी ऐसे डिजाइन या इंटरफेस ट्रिक्स, जो ऑनलाइन बायर्स को धोखे में डालकर उनसे मनमुताबिक फैसला करवा लेते हैं। इसमें फॉल्स अर्जेंसी यानी जैसे लिमिटेड स्टॉक का फेक फीयर, बास्केट स्नीकिन्ग यानी बिना बताए चार्ज जोड़ देना और सब्सक्रिप्शन ट्रैप जैसी चालाकियों का समावेश हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी सीसीपीए ने सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को सख्त चेतावनी दी है कि वे अपने प्लेटफॉर्म से डार्क पैटर्न्स हटाने के लिए कहा हैं। इसके लिए उन्हें 3 महीने के अंदर खुद से ऑडिट कर तय करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म पर किसी भी तरह की धोखाधड़ी या भ्रामक ट्रेड प्रैक्टिस नहीं हो रही हैं। केंद्र सरकार चाहती है कि कंपनियां खुद डिक्लेरेशन दें कि वे किसी भी डार्क पैटर्न में शामिल नहीं है। इससे कंज्यूमर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के बीच भरोसा मजबूत होगा और एक फेयर डिजिटल इकोसिस्टम बन सकता है।
सीसीपीए ने पहले से ही कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों को एक नोटिस जारी किए हैं, जिन पर डार्क पैटर्न गाइडलाइंस तोड़ने का आरोप हैं। प्राधिकरण ने ये बात साफ तौर पर कहा है कि वे ऐसी धोखाधड़ी वाली डिजाइन टेक्निक्स पर कड़क नजर रखे हुए हैं।
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कंज्यूमर मामलों के विभाग ने एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप यानी जेडब्ल्यूजू बनाया है, जिसमें मंत्रालयों, रेग्यूलेटर्स, कंज्यूमर्स ऑर्गनाइजेशन और लॉ यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट शामिल हैं। ये ग्रुप ई-कॉमर्स पर डार्क पैटर्न्स की पहचान कर सकता है और रेग्यूलर तौर से सरकार को जानकारी देगा। साथ ही, कंज्यूमर्स के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कैंपेन की भी सिफारिश कर सकता है।