पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच जल्द द्विपक्षीय ट्रेड समझौता होने की संभावना है। इस महीने की आखिरी में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच एक अहम बैठक होने जा रही है, जिसमें समझौते पर अंतिम फैसला लिया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच इस अहम मुद्दे को लेकर लगभग सहमति बन गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों पक्ष समझौते के बेहद करीब हैं। इसको लेकर अमेरिका की ओर से कई बार बयान दिए जा चुके हैं। हालांकि, भारत की यह योजना है कि नौ जुलाई से पहले इस वार्ता को पूरी किया जाए।
सूत्रों का कहना है कि समझौता पूरी होने से पहले ही भारत कई अहम मुद्दों पर फैसला ले चुका है। खासकर जिन बिंदुओं को अमेरिका समझौता वार्ता के दौरान उठा रहा था। इनमें इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात पर लगने वाले टैक्स का मुद्दा भी है। वर्तमान समय में भारत 110 फीसदी आयात शुल्क लगाता है। लेकिन, नई इलेक्ट्रिक व्हिकल पॉलिसी में भारत ने आयात शुल्क को कुछ शर्तों के साथ इसे घटाकर 15 फीसदी शुल्क लगाने का ऐलान किया है।
भारत ने अमेरिका के लिए सीधे तौर पर 95 फीसदी की कटौती का प्रावधान किया है। जानकार कहते हैं कि इस पॉलिसी से अमेरिका का लाभ होगा लेकिन इस पॉलिसी में भारत ने आठ हजार ईकाई प्रति वर्ष का कोटा निर्धारित किया है। अमेरिका इसे बढ़ाने की मांग कर सकता है। दूसरा, भारत ने आयात शुल्क 35,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 29 लाख रुपये ) तक की गाड़ियों के लिए रखा है, जिसे बढ़ाने की मांग भी अमेरिका कर सकता है। अभी तक की वार्ता के बाद व्यापार समझौते को लेकर कई पॉजिटिव संकेत मिले हैं। क्योंकि भारतीय वार्ताकार ऑटोमोबाइल और कृषि सहित संवेदनशील क्षेत्रों को खोलने को तैयार है। उधर, कृषि से जुड़ी भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए अमेरिका सहमत दिखाई देता है। ऐसे में समझौता अब जल्द हो सकता है।
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अमेरिका और भारत के बीच जारी ट्रेड वार्ता में 10 प्रतिशत बेस शुल्क का मुद्दा केंद्र में है, जिसे ट्रंप सरकार ने पांच अप्रैल से सभी देशों के इंपोर्ट पर लागू किया है। सूत्रों के अनुसार, भारत इस बात पर बातचीत कर रहा है कि इस शुल्क को पूरी तरह से हटाया जाए। इसके साथ ही नौ जुलाई से लागू होने वाले 16 फीसदी एक्स्ट्रा ट्रेड चार्च को भी खत्म किया जाए। ऐसी जानकारी आ रही है कि भारत ने अमेरिका के उस सुझाव को ठुकरा दिया है, जिसमें ब्रिटेन के साथ हुए व्यापार सौदे की तरह शुल्क जारी रखने की बात कही गई थी।