(प्रतीकात्मक तस्वीर)
GST Reform Benefit On Building Materials: हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारण की अध्यक्षता में हुई 56वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में बिल्डिंग मटेरियल पर टैक्स घटाने का बड़ा फैसला लिया गया है। हालांकि, इसका असर खुद से घर बनवाने वाले और फ्लैट खरीदारों पर अलग-अलग रूप में देखने को मिल सकता है। खुद से अपना मकान बनवा रहे लोगों को जीएसटी रेट कटौती का सीधा राहत मिलेगी, जबकि फ्लैट खरीदने वालों के लिए यह पेचीदा साबित हो सकता है।
जो लोग अपने लिए घर बनवा रहे हैं या आगे इसकी तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए जीएसटी कटौती का असर तुरंत और महत्वपूर्ण होगा। उनकी लागत थोड़ी कम हो जाएगी। जीएसटी काउंसिल की बैठक में लिए गए फैसले के मुताबिक, अब सीमेंट पर जीएसटी 28 प्रतिशत कर दिया गया है। सीमेंट आमतौर पर किसी भी मकान निर्माण लागत का लगभग 20 प्रतिशत होता है। यानी यह बदलाव कुल लागत में करीबी 2 प्रतिशत की बचत दिला सकता है।
इसके अलावा रेत-चूना ईंट और लकड़ी से बने उत्पादों पर जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। ये मिलकर निर्माण लागत का लगभग 5-10 प्रतिशत हिस्सा होते हैं। इसका मतलब है कि आम आदमी को कुल लागत में और भी राहत मिल सकती है। रियल एस्टेट रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आज भी अधिकतर घर व्यक्तिगत निर्माण के रूप में ही बनते हैं, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में। ऐसे में यह टैक्स कटौती सीधे तौर पर आम आदमी को फायदा पहुंचा सकती है।
जीएसटी सुधार के बाद भी फ्लैट या अपार्टमेंट खरीदने वाले लोगों के लिए तस्वीर थोड़ी अलग है। रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़े जानकारों का मानना है कि ज्यादातर बिल्डर ठेकेदारों से काम करवाते हैं। ठेकेदार सीमेंट जैसे उत्पाद खरीदते समय जो टैक्स देते है, उसका फायदा वे इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) यानी जीएसटी छूट के जरिए ले लेते हैं। इसका मतलब है कि बिल्डर की लागत पर टैक्स का बोझ ज्यादा नहीं पड़ता। ऐसे में सीमेंट पर टैक्स कम होने से अपार्टमेंट की कीमतों में तुरंत कमी दिखना मुश्किल है। अगर कोई बिल्डर खुद सीमेंट खरीदता है, तो उसका टैक्स खर्च कम होगा और शायद ग्राहकों को भी थोड़ा फायदा मिले।
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जीएसटी में सुधार के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या बिल्डर सीधे फ्लैट खरीदारों को कोई राहत देंगे। क्या उनकी कोई कानूनी या नैतिक जिम्मेदारी है कि टैक्स बचत का फायदा खरीदारों तक पहुंचाए। इस मामले में फिलहाल सरकार ने सख्त नियम बनाने की बजाय भरोसे पर जिम्मेदारी बिल्डर पर छोड़ी है। अब डेवलपर्स को कानूनी अपेक्षाओं को समझना, खरीदारों की उम्मीदों को संभालना और अपनी कीमत तय करने के पीछे ठोस तर्क तैयार करने होंगे।