बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Jhajha Assembly Constituency: बिहार के जमुई जिले की झाझा विधानसभा सीट, जिसे अक्सर बिहार का ‘मिनी शिमला’ कहा जाता है, अपनी पहाड़ी भौगोलिक स्थिति और झारखंड सीमा से निकटता के कारण एक अनूठी पहचान रखती है। यह सीट इस बार जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच कड़े मुकाबले का केंद्र बनी हुई है, जहां राजद अपनी पहली जीत दर्ज करने की कोशिश में है।
झाझा का चुनावी इतिहास बताता है कि यह सीट पिछले कुछ दशकों से जदयू (और उसकी पूर्ववर्ती समता पार्टी) के मजबूत गढ़ के रूप में उभरी है। 1951 से अब तक हुए 18 चुनावों में जदयू और समता पार्टी ने मिलकर पांच बार जीत दर्ज की है। पिछले चुनाव (2020) में राजद अपनी पहली जीत के बेहद करीब पहुंच गया था, लेकिन अंततः जदयू के दामोदर रावत ने सीट पर कब्जा बरकरार रखा।
इस बार जदयू ने अपने मौजूदा विधायक दामोदर रावत पर भरोसा जताया है। वहीं, राजद ने जय प्रकाश नारायण यादव को उम्मीदवार बनाया है, जो इस सीट पर राजद का खाता खोलने की पूरी कोशिश करेंगे। इस सीट पर कुल 9 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से नीलेंदु दत्त मिश्रा भी शामिल हैं। जन सुराज की एंट्री से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जो मुख्य दलों के वोटों को प्रभावित कर सकता है।
झाझा सीट पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में यादव और मुस्लिम समुदाय के वोट निर्णायक माने जाते हैं। राजद अपने पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर निर्भर करती है। 2020 में राजद की करीबी हार ने साबित कर दिया था कि यह फैक्टर यहां काफी मजबूत है, लेकिन जदयू के अपने सामाजिक आधार ने इसे मात दी। जदयू और राजद के बीच कड़ा मुकाबला होने का मुख्य कारण यही है कि दोनों दल यहां के विभिन्न जातीय समूहों के बीच अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करते हैं।
झाझा का राजनीतिक इतिहास 1951 से शुरू हुआ था। शुरुआती दौर में कांग्रेस ने सात बार जीत हासिल कर अपना दबदबा बनाए रखा। समाजवादी पार्टी और संयुक्त समाजवादी पार्टी ने तीन-तीन बार सफलता पाई, जो इस क्षेत्र में वामपंथी और समाजवादी आंदोलनों के पुराने प्रभाव को दर्शाता है। हाल के वर्षों में यह सीट मुख्य रूप से जदयू और अब राजद के बीच केंद्रित हो गई है।
झाझा अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। झारखंड सीमा से सटा होने के कारण इसका मौसम और भूगोल की वजह से इसे ‘मिनी शिमला’ के नाम से भी जाना जाता है। मलयपुर का देवी काली मंदिर हर साल काली मेला के लिए प्रसिद्ध है। गिद्धौर का मिंटो टावर, जो 1909 में ब्रिटिश वायसराय के स्वागत के लिए बना था, ऐतिहासिक महत्व रखता है।
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नागी और नकटी डैम अभयारण्य देशी और विदेशी पक्षियों का आश्रय स्थल हैं और इन्हें रामसर साइट का दर्जा मिलने से इनका राष्ट्रीय महत्व बढ़ गया है। झाझा विधानसभा सीट 2025 में जदयू के गढ़ को बचाने और राजद के लिए नया इतिहास रचने की एक बड़ी लड़ाई का गवाह बनेगी।