ईयर एंडर 2025 (सोर्स- सोशल मीडिया)
Year Ender 2025: जैसे-जैसे 2025 अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा, यह साफ हो गया कि यह साल भारत के राजनीतिक नजरिए से महत्वपूर्ण और उतार-चढाव भरा रहा। इस साल चुनावों, विधायी बदलावों, आतंकवादी घटनाओं और सुरक्षा संचालन जैसी घटनाओं ने देश की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। आइए 2025 की पांच बड़ी राजनीतिक घटनाओं पर नजर डालें, जिन्होंने पूरे देश में सियासत को आकार दिया।
2025 की शुरुआत दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ हुई, जिसने राजधानी की राजनीति में भूचाल ला दिया। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच था। आम आदमी पार्टी ने 2013 के बाद लगातार सत्ता में रहते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और फ्री बिजली जैसी योजनाओं के माध्यम से जनता का समर्थन हासिल किया। वहीं, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उनकी सरकार के विकास कार्यों के आधार पर चुनावी मुद्दे उठाए।
भाजपा ने चुनाव अभियान में केजरीवाल सरकार पर कथित भ्रष्टाचार और परियोजनाओं की विफलताओं को लेकर जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत की। कांग्रेस इस त्रिकोणीय मुकाबले में अपेक्षाकृत पीछे रही। चुनाव परिणामों ने सभी को चौंका दिया। भाजपा ने 27 साल के इंतजार के बाद दिल्ली विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत हासिल किया और आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। इस जीत के साथ भाजपा ने राष्ट्रीय राजधानी की राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाया और नए मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता को नियुक्त किया।
संसद में अप्रैल में वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित किया। यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के मकसद से लाया गया था। पुराने वक्फ अधिनियम (1923) और 1995 के संशोधनों को ध्यान में रखते हुए, यह विधेयक वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों और महिलाओं को शामिल करने, पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाने और प्रबंधन में सुधार लाने जैसे कई बदलाव करता है।
हालांकि, इस विधेयक को लेकर विपक्ष और मुस्लिम संगठनों में तीव्र विरोध हुआ। उनका कहना था कि यह कानून मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता को खतरे में डालता है। इसके बावजूद, सरकार ने स्पष्ट किया कि इससे समुदाय को कोई नुकसान नहीं होगा। इस विधेयक के पारित होने के बाद राजनीतिक बहस तेज हो गई और यह देशभर में एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन गया।
सुरक्षा व्यवस्था के नजरीए से 2025 भारत के लिए कई मायनों में चुनौतापूर्ण रहा। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों पर किए जानलेवा हमले में 27 निर्दोष लोगों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रखा दिया। यह हमला मोदी सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना गया। इसके बाद विपक्ष ने सरकार से सुरक्षा के सवाल पूछे, लेकिन सामूहिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ समर्थन भी किया।
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भारत ने इस हमले का जवाब ऑपरेशन सिंदूर के रूप में दिया। 7 मई की रात भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों को तबाह किया। पाकिस्तान ने इसका जवाबी हमला किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर हस्तक्षेप का दावा किया, जिसके कारण भारत ने सैन्य कार्रवाई रोक दी। इस पूरे घटनाक्रम ने देश और विपक्ष के बीच गहरी राजनीतिक बहस को जन्म दिया। पहलगाम हमले के अलावा 10 नवंबर 2025 को लाल किला मेट्रो के पास एक कार धमाका ने एक बार फिर पूरे देश को आतंक के साए में लाकर खड़ा कर दिया।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई की देर शाम स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कार्यकाल मूल रूप से 10 अगस्त 2027 तक था, लेकिन वे बीच में इस्तीफा देने वाले पहले उपराष्ट्रपति बने। इस इस्तीफे ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया और विपक्ष ने इसे सरकार पर दबाव का परिणाम बताया।
इसके बाद उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए। एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया, जबकि इंडिया गठबंधन ने बी सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा। संसदीय संख्याबल और गठबंधन समीकरणों के कारण सीपी राधाकृष्णन की जीत तय मानी गई। 9 सितंबर को उनका चुनाव परिणाम घोषित हुआ और वे 15वें उपराष्ट्रपति बने। इस चुनाव ने देश की राजनीतिक स्थिरता में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।
6 और 11 नवंबर को बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुआ, जिसने देश की राजनीति को नई दिशा दी। चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर थी। एनडीए के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास, रोजगार और राज्य के सुधार को प्रमुख मुद्दा बनाया। वहीं, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी, उद्योगों की कमी और अपराध जैसे मुद्दों पर हमला किया।
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14 नवंबर को आए चुनाव परिणाम ने राजनीतिक दृष्टिकोण से बड़ा असर डाला। बिहार की कुल 243 सीटों में एनडीए को 202 सीटें मिलीं। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और जेडीयू के साथ मिलकर सत्ता में बनी रही। महागठबंधन केवल 35 सीटों तक सीमित रहा। इस जीत ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए रखा और विपक्ष में दरारें पैदा कीं। बिहार चुनाव ने 2029 के लोकसभा चुनावों की दिशा भी तय कर दी।