
बखरी विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bakhri Assembly Constituency: बिहार के बेगूसराय जिले का बखरी (एससी) विधानसभा क्षेत्र, जो गंडक नदी के किनारे बसा है, अपनी घनी आबादी और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वामपंथी (लेफ्ट) विचारधारा के मजबूत गढ़ के रूप में जाना जाता है। 2020 में सीपीआई ने यहां मात्र 777 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, जिससे यह सीट 2025 में एक बार फिर भाजपा और सीपीआई (महागठबंधन) के बीच कांटे की टक्कर का केंद्र बनी हुई है।
बखरी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास पूरी तरह से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के दबदबे को दर्शाता है:
सीपीआई का वर्चस्व: 1951 में स्थापित इस सीट पर सीपीआई ने अब तक 11 बार जीत हासिल की है, जिसमें 1967 से 1995 तक लगातार आठ बार जीत का एक लंबा सिलसिला शामिल है।
बदलते समीकरण: 2000 में राजद ने सीपीआई की जीत का सिलसिला तोड़ा, लेकिन 2005 में सीपीआई ने फिर वापसी की।
भाजपा का उदय: 2010 में भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज कर इस वामपंथी गढ़ में सेंध लगाई। 2015 में राजद ने जीत हासिल की।
2020 का रोमांच: 2020 में महागठबंधन ने यह सीट सीपीआई को सौंपी, जिसके उम्मीदवार मनोज कुमार ने भाजपा के प्रत्याशी को केवल 777 वोटों के बेहद कम अंतर से हराया। यह जीत सीपीआई के लिए मनोबल बढ़ाने वाली, लेकिन भाजपा के लिए आगे की तैयारी का संकेत थी।
जातीय और ग्रामीण समीकरण: SC वोटर निर्णायक
बखरी विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण बहुल (करीब 85 प्रतिशत) है, जहां जातीय और स्थानीय मुद्दे निर्णायक भूमिका निभाते हैं:
एससी वोटर का महत्व: 2008 के परिसीमन से एससी आरक्षित होने के बाद, दलित मतदाताओं (करीब 20-25 प्रतिशत) का यहां विशेष महत्व है।
वामपंथ का आधार: सीपीआई का पारंपरिक आधार दलितों, गरीब किसानों और मजदूरों के बीच रहा है, जबकि भाजपा सवर्णों और ओबीसी के एक बड़े हिस्से के वोटों पर निर्भर करती है।
मतदाता संख्या: 2.94 लाख से अधिक मतदाता इस बार परिणाम तय करेंगे।
गंडक नदी के किनारे बसा होने के कारण यह कृषि प्रधान क्षेत्र है, लेकिन यहां के लोगों के लिए मूलभूत चुनौतियां बनी हुई हैं:
बाढ़ की तबाही: गंडक नदी की बाढ़ हर साल फसलें बर्बाद करती है और ग्रामीण जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है, जिससे प्रवासन बढ़ा है। बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के स्थायी समाधान प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं।
अर्थव्यवस्था: बलुई-दोमट मिट्टी धान, गेहूं और दालों की खेती के लिए उपजाऊ है, और दुग्ध उत्पादन भी आय का महत्वपूर्ण स्रोत है, लेकिन रोजगार के अवसरों की कमी बनी हुई है।
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2025 का चुनाव यह तय करेगा कि भाजपा इस वामपंथी गढ़ में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करती है या सीपीआई (महागठबंधन के साथ) अपनी पारंपरिक सीट को भारी अंतर से बरकरार रखने में सफल होती है।






