
मुजफ्फरपुर विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Muzaffarpur Assembly Constituency: बिहार का मुजफ्फरपुर जिला न सिर्फ अपनी मीठी ‘शाही लीची’ के लिए मशहूर है, बल्कि यह बिहार की राजनीति का एक ऐसा चुनावी अखाड़ा है, जहाँ का इतिहास खुद चुनावी नतीजों में अपनी छाप छोड़ता है। मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट का सफर 1957 में शुरू हुआ था।
तब से लेकर अब तक, इसने कभी किसी एक दल को अपना स्थायी ‘बादशाह’ नहीं बनने दिया। यह सीट अप्रत्याशित परिणामों के लिए जानी जाती है और यहीं से Bihar Politics को कई बड़ी हस्तियां मिली हैं।
मुजफ्फरपुर की राजनीतिक चेतना और जनसमर्थन की भावना की जड़ें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गहरी रही हैं:
खुदीराम बोस: 30 अप्रैल 1908 को जब 18 वर्षीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर मुजफ्फरपुर लाया गया था, तो पूरा शहर उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ा था।
महामाया प्रसाद की जीत: 1957 में महामाया प्रसाद ने दिग्गज कांग्रेसी नेता महेश बाबू को हराया था। बाद में यही महामाया प्रसाद 1967 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे।
जॉर्ज फर्नांडिस का जनसमर्थन: आपातकाल के बाद 1977 में, समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। जनता ने उन्हें 3 लाख से अधिक वोटों के भारी अंतर से जिताया।
मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से एक है। यह मुख्य रूप से एक शहरी सीट है, जहाँ करीब 88 प्रतिशत से अधिक शहरी मतदाता हैं, जो इसे उत्तर बिहार की व्यावसायिक राजधानी का दर्जा भी देता है।
कांग्रेस का रिकॉर्ड: कांग्रेस की इस सीट पर रिकॉर्ड छठी जीत है, जो इसके राजनीतिक महत्व को दर्शाता है।
भाजपा की चुनौती: भाजपा के सुरेश कुमार शर्मा पिछले 25 वर्षों से इस चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 2010 और 2015 में लगातार दो बार जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत कर चुके थे।
सुरेश कुमार शर्मा की पकड़ मजबूत हो चुकी थी, लेकिन 2020 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार बिजेंद्र चौधरी ने उन्हें भारी अंतर से हराकर सीट पर कब्जा कर लिया।
आगामी Bihar Assembly Election 2025 में मुख्य मुकाबला एक बार फिर एनडीए (NDA) और महागठबंधन के बीच होने की संभावना है:
कांग्रेस (महागठबंधन): बिजेंद्र चौधरी अपनी जीत को बरकरार रखने की चुनौती का सामना करेंगे। उन्हें शहरी विकास और एंटी-इनकम्बेंसी दोनों पर ध्यान देना होगा।
भाजपा (NDA): सुरेश कुमार शर्मा अपनी खोई हुई सीट पर वापसी के लिए पूरी ताकत लगाएंगे। वह भाजपा के संगठनात्मक बल और शहरी विकास के एजेंडे पर निर्भर करेंगे।
इस सीट पर शहरी मध्यम वर्ग, व्यापारी समुदाय और विभिन्न जातियों के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि शहरी वोटरों का मिजाज यहाँ के चुनावी नतीजे तय करता है।
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मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट बिहार चुनाव 2025 में एक प्रतिष्ठा की लड़ाई बनने जा रही है। ‘शाही लीची’ की तरह ही यहाँ का चुनावी इतिहास भी अप्रत्याशित स्वाद वाला रहा है। कांग्रेस के बिजेंद्र चौधरी के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है, जबकि भाजपा के सुरेश कुमार शर्मा के लिए यह उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी वापसी का संघर्ष होगा। यह चुनाव यह साबित करेगा कि मुजफ्फरपुर के शहरी मतदाता विकास और दलीय निष्ठा में से किसे अधिक तवज्जो देते हैं।






