
कुटुंबा विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Kutumba Assembly Constituency: मगध क्षेत्र के औरंगाबाद जिले में स्थित कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र महज एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि ग्रामीण बिहार की चुनौतियों, सामाजिक न्याय की मांगों और एक प्रभावशाली नेता के उदय की कहानी है।
अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और इसे बिहार की दलित-राजनीति का एक अहम केंद्र माना जाता है, जहाँ Bihar Politics का भविष्य दलित समुदाय के सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है।
भौतिक रूप से यह निर्वाचन क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है, जहाँ शहरी आबादी न के बराबर है। इसलिए यहां के मुद्दे भी एकदम जमीनी हैं: बुनियादी विकास, ग्रामीण सड़कों, पानी, बिजली और बदहाल स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक आरक्षित सीट है, जहाँ कुल आबादी में अनुसूचित जातियों का महत्वपूर्ण प्रतिशत लगभग 29.2 प्रतिशत है। सामाजिक न्याय, आरक्षण का उचित प्रभाव और दलित समुदाय की सक्रिय भागीदारी यहां के चुनावी बहस का केंद्र बिंदु है। इसके अलावा, मुस्लिम आबादी भी लगभग 7.8 प्रतिशत है, जो चुनावी समीकरणों में खास भूमिका निभाती है और महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है।
कुटुंबा के राजनीतिक इतिहास का टर्निंग पॉइंट कांग्रेस के राजेश कुमार का लगातार दो चुनावों में दबदबा है।
2010 का पहला चुनाव: इस सीट पर पहला चुनाव 2010 में हुआ था, जिसे जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के ललन राम ने जीता था। उस चुनाव में राजेश कुमार को करारी हार का सामना करना पड़ा था और वह तीसरे स्थान पर रहे थे।
2015 में वापसी: 2015 में जब यह सीट राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के तहत कांग्रेस को मिली तो राजेश कुमार ने दमदार वापसी की और भारी अंतर से जीत दर्ज की।
2020 में जीत को मजबूती: 2020 में उन्होंने अपनी जीत को और मजबूत किया। उन्हें 50,822 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के श्रवण भुइयां को 34,169 वोट मिले। जीत का अंतर 16,653 वोटों का था।
राजेश कुमार की यह लगातार दूसरी जीत थी, जिसने कुटुंबा में कांग्रेस का गढ़ स्थापित कर दिया। उनकी बढ़ती राजनीतिक साख का प्रमाण यह है कि 2025 चुनावों से ठीक पहले उन्हें बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है, जिससे इस सीट पर उनकी पकड़ और मजबूत हुई है।
कुटुंबा की राजनीति में ‘खामोश मतदाता’ एक बड़ी पहेली हैं। 2020 का मतदान प्रतिशत एक चौंकाने वाला आंकड़ा प्रस्तुत करता है: कुल 2,66,974 पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ 52.06 प्रतिशत ने ही वोट डाला था। इसका मतलब है कि लगभग 48 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
यह भी पढ़ें:- वारिसलीगंज विधानसभा: भाजपा की हैट्रिक की तैयारी, राजद को अब भी पहली जीत का इंतजार
कुटुंबा सीट पर लगातार दो हार ने एनडीए (NDA) को नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है। अब एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वह राजेश कुमार के प्रभाव को कैसे कम करे और सबसे अहम, 2020 में मतदान न करने वाले लगभग 48 प्रतिशत खामोश मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक कैसे लाए। एनडीए की भविष्य की रणनीति इस ‘खामोश मतदाता समूह’ को साधने पर ही टिकी हुई है, जो आगामी Bihar Assembly Election 2025 में एक बड़ा उलटफेर कर सकता है।






