मोदी के दौरे से भारत-चीन में बनेगा नया गठबंधन!
India China US Relations: पिछले दो सालों में भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक अलग तरीके का बदलाव आया है। यह बदलाव चौंकाने वाला है, क्योंकि महज दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत हुआ था। अमेरिकी संसद में उनके संबोधन को खूब सराहा गया था और तालियों की गड़गड़ाहट ने उस क्षण को ऐतिहासिक बना दिया था। वह दृश्य इस बात का संकेत था कि विभाजित हो रही वैश्विक राजनीति के बीच भारत, अमेरिका के लिए एक भरोसेमंद सहयोगी बनकर उभरा है।
हालांकि अब भारत और अमेरिका के संबंधों में फिलहाल गंभीर तनाव नजर आ रहा है। इसकी अहम वजह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत की टैरिफ दर थोपना है। टैरिफ को लेकर ट्रंप की ओर से तीखे बयान लगातार सामने आ रहे हैं। पहले ही वे भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन अब मंगलवार को उन्होंने संकेत दिया कि अगले 24 घंटों में टैरिफ दरों में और इजाफा किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हम 25 प्रतिशत की दर में बदलाव करने जा रहे हैं, साथ ही जरूरत पड़ने पर इसे और बढ़ाएंगे।”
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग छह वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह दौरा खासतौर पर इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि यह गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई झड़प के बाद पीएम मोदी का पहला चीन दौरा होगा। 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की बैठक चीन में आयोजित होने वाली है, और ऐसी संभावना है कि प्रधानमंत्री मोदी इसमें हिस्सा लेंगे।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग
इसके अलावा उनका जापान दौरा भी प्रस्तावित है। मौजूदा समय में भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर मतभेद तेज हो गए हैं, जबकि अमेरिका और चीन के बीच तनाव पहले से ही बना हुआ है। ऐसे में पीएम मोदी की संभावित चीन यात्रा भारत की संतुलित विदेश नीति की झलक देती है। भारत एक ओर अमेरिका के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी निभा रहा है, तो दूसरी ओर रूस और चीन जैसे देशों से संवाद बनाए रखने की नीति पर भी कायम है।
गलवान घाटी में 2020 में हुए खूनी टकराव के बाद भारत और चीन के संबंधों में गहरा तनाव आ गया था। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा महज शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शिरकत भर नहीं है, बल्कि यह एक अहम संदेश है। यह दौरा दर्शाता है कि भारत सभी देशों से दोस्ती चाहता है, लेकिन किसी के प्रभाव में नहीं आता। अगर पीएम मोदी चीन जाते हैं, तो यह अमेरिका के लिए भी एक सिग्नल होगा कि भारत अपनी विदेश नीति में स्वतंत्र है और चीन के साथ संबंध सुधारने में भी हिचक नहीं रखता। जबकि अमेरिका चाहता है कि भारत चीन से हमेशा दूरी बनाकर रखे।
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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की नीति में काफी भ्रम की स्थिति दिखाई देती है। उनका कहना है कि इससे भारत को तो नुकसान होगा ही, लेकिन असल में अमेरिका को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि उनके अनुसार ट्रंप की विदेश नीति भारत को लेकर गलत दिशा में बढ़ रही है। वे यह भी मानते हैं कि ऐसी स्थिति में भारत और चीन एक-दूसरे के करीब आ सकते हैं। उनका आगे कहना है कि यह भविष्य में संभव है जिसमें भारत और चीन, अमेरिकी दबाव का संयुक्त रूप से सामना करने के लिए साथ आ खड़े दिख सकते हैं।