
फाइल फोटो (Image- Social Media)
Russia News: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा अभी समाप्त हुई है, जहाँ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने पर चर्चा की। लेकिन मॉस्को लौटते ही पुतिन को एक बड़ा झटका झेलना पड़ सकता है। दुनिया की सबसे समृद्ध लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएँ रूस के समुद्री तेल व्यापार पर अब तक का सबसे कठोर कदम उठाने की तैयारी में हैं। दरअसल EU और G7 देश रूस के खिलाफ एक नई रणनीति बना रहे हैं, जिसके तहत वे रूसी तेल निर्यात पर पूर्ण समुद्री प्रतिबंध लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह कदम रूस की युद्धकालीन अर्थव्यवस्था को सीधे निशाना बनाएगा, क्योंकि तेल उसके केंद्रीय बजट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा देता है।
एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित योजना रूसी तेल की ‘प्राइस कैप’ व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर देगी और पश्चिमी टैंकरों, बीमा एवं रजिस्ट्रेशन सेवाओं के उपयोग पर रोक लगा देगी। सवाल यह है कि क्या इससे वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल पैदा होगी? आइए घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।
G7 देश और यूरोपीय संघ रूसी कच्चे तेल के लिए समुद्री सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। इससे पश्चिमी जहाज़ों और बीमा सेवाओं का इस्तेमाल रुक जाएगा, जो अभी भी रूस के तेल निर्यात का बड़ा हिस्सा ढो रहे हैं। यह जानकारी सीधे बातचीत से जुड़े छह सूत्रों ने Reuters को दी।
2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद G7 और EU ने रूसी तेल आयात पर रोक तो लगाई, लेकिन पूरी तरह बंद करने के बजाय ‘प्राइस कैप’ का तरीका अपनाया। इसमें रूस को 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत पर तेल बेचने पर ही पश्चिमी शिपिंग और बीमा सेवाएँ मिलती थीं। इससे रूस की कमाई पर दबाव तो बढ़ा, लेकिन निर्यात कभी पूरी तरह नहीं रुका।
धीरे-धीरे मॉस्को ने इसका रास्ता निकाल लिया और ‘शैडो फ्लीट’ नामक एक वैकल्पिक जहाजी बेड़ा तैयार किया। पुराने, अनियंत्रित टैंकर जो पश्चिमी नियमों से बाहर हैं। अक्टूबर 2025 तक रूस का 44% तेल इसी बेड़े से, जबकि 38% फिर भी पश्चिमी टैंकरों से भेजा जा रहा था। सितंबर 2025 में EU और कनाडा ने प्राइस कैप को घटाकर 47.6 डॉलर कर दिया, लेकिन अमेरिका ने इसका समर्थन नहीं किया।
Reuters के अनुसार, G7–EU अब प्राइस कैप को समाप्त कर ‘फुल मैरीटाइम सर्विसेज बैन’ की ओर बढ़ रहे हैं। इसका मतलब यह होगा कि रूसी तेल ले जाने वाले किसी भी जहाज़ को पश्चिमी टैंकर, बीमा या झंडा पंजीकरण नहीं मिलेगा—चाहे तेल कहीं भी जा रहा हो। यह कदम रूस के एशियाई बाज़ारों पर सीधा असर डालेगा, क्योंकि भारत और चीन को भेजे जाने वाले उसके एक-तिहाई से ज्यादा तेल का परिवहन अभी भी ग्रीस, साइप्रस और माल्टा के EU टैंकरों से होता है।
यह प्रस्ताव प्राइस कैप को अप्रासंगिक बना देगा और उस समुद्री व्यापार को प्रभावित करेगा, जिससे रूस भारी मुनाफा कमाता है। यदि G7–EU इस योजना को हरी झंडी देते हैं, तो रूस को मजबूरन अपनी शैडो फ्लीट पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ेगा जो पहले से ही 1,423 जहाज़ों तक पहुँच चुकी है।
EU के 27 सदस्य देश इसे अपने अगले (20वें) प्रतिबंध पैकेज में शामिल करना चाहते हैं, जो 2026 की शुरुआत में लागू हो सकता है। लेकिन इसके लिए G7 की सर्वसम्मति ज़रूरी है। ब्रिटेन और अमेरिका इस कदम के प्रमुख समर्थक हैं। अंतिम फैसला काफी हद तक अमेरिका की नीति पर निर्भर करेगा, खासकर यह कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन रूस–यूक्रेन शांति प्रयासों के बीच कौन-सी रणनीति अपनाता है।
प्राइस कैप से बचने के लिए रूस ने अपने तेल निर्यात को तेजी से एशियाई देशों की ओर मोड़ा है, अक्सर अपने ही टैंकरों का उपयोग करते हुए। इनमें कई जहाज़ बिना पश्चिमी बीमा और अस्पष्ट स्वामित्व वाले हैं। लंदन स्थित लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस के अनुसार, रूस, ईरान और वेनेजुएला के प्रतिबंधित तेल को ढोने वाली शैडो फ्लीट अब 1,423 टैंकरों तक पहुँच चुकी है।
बाइडेन प्रशासन का मत रहा है कि रूस को पुराने जहाज बदलने पर मजबूर करना उसकी युद्ध अर्थव्यवस्था को कमजोर करेगा। लेकिन ट्रंप प्रशासन प्राइस कैप कड़ा करने को लेकर कम उत्साहित रहा है।
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पश्चिमी सरकारें कहती हैं कि उनका लक्ष्य रूस की युद्धकालीन आय में कटौती करना है, लेकिन वैश्विक तेल बाजार को झटका दिए बिना। अगर पूर्ण समुद्री प्रतिबंध लागू होता है, तो रूस की पश्चिमी जहाजरानी सेवाओं तक पहुँच गंभीर रूप से सीमित हो जाएगी और उसे या तो अपनी शैडो फ्लीट और बढ़ानी होगी या तेल निर्यात घटाना पड़ेगा।






