सीरिया पर टूटी साजिशों की गाज, (डिजाइन फोटो)
दमिश्क: सीरिया एक बार फिर वैश्विक शक्तियों की राजनीतिक चालबाज़ियों का केंद्र बनता जा रहा है। तुर्की के विदेश मंत्री की इजरायल को दी गई चेतावनी और सीरिया में गहराता आंतरिक संघर्ष इस ओर इशारा करता है कि देश एक बार फिर जातीय और जनजातीय टकराव की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका, रूस, ईरान और इजरायल जैसी ताकतें अपने-अपने हितों के हिसाब से विभिन्न गुटों को समर्थन दे रही हैं, जिससे सीरिया की स्थिरता खतरे में पड़ गई है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की मानें तो इजरायल नहीं चाहता कि सीरिया में कोई मज़बूत केंद्र सरकार हो, बल्कि उसके लिए एक विभाजित सीरिया ज़्यादा लाभकारी है। इसी रणनीति के तहत इजरायल ने द्रूज समुदाय को समर्थन देना शुरू किया है और स्वेदा प्रांत को एक अलग “द्रूजलैंड” के रूप में विकसित करने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं। इस बीच, अल-शरा सरकार और दूसरी जनजातियों के बीच संघर्ष और भी उग्र हो गया है, जिससे देश में और ज़्यादा अव्यवस्था फैल रही है।
सीरिया में जारी संघर्ष अब अलग-अलग गुटों और बाहरी ताकतों के टकराव का केंद्र बन गया है। द्रूज समुदाय स्वेदा क्षेत्र पर नियंत्रण चाहता है, जबकि बशर अल-असद समर्थक अल-अवाइट्स भूमध्यसागरीय इलाके पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। उधर, कुर्दिश मिलिशिया मंजिब से लेकर दैर अज-जोर तक अपने प्रभाव का विस्तार करने में जुटी है और उन्होंने अब तक हथियार नहीं डाले हैं। ISIS भी पलमायरा के आसपास दोबारा सक्रिय होता दिख रहा है।
इस पूरे संघर्ष में वैश्विक ताकतें भी अपनी-अपनी रणनीति में लगी हैं। तुर्की ने सीमा पर तुर्क-समर्थित विद्रोहियों को सशक्त किया है, वहीं रूस और ईरान बशर अल-असद को सत्ता में बनाए रखने के प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर, अमेरिका भी इस क्षेत्र में अपने हित साधने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
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अमेरिका और तुर्की ने सीरिया में कुर्द और ड्रूज़ समुदायों से 30 दिनों के भीतर शांति स्थापित करने की अपील की है। हालांकि, ड्रूज़ नेता लैथ अल-बलौस ने आरोप लगाया है कि उनके समुदाय का जनसंहार हो रहा है। उन्होंने बातचीत का समर्थन करते हुए कहा कि समाधान संवाद से ही निकलेगा।
सीरिया में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। इजरायल की ‘बांटो और राज करो’ रणनीति, अमेरिका और रूस की टकरावपूर्ण नीतियां और क्षेत्रीय गुटों की आपसी लड़ाई ने देश को गहरे संकट में डाल दिया है। यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो सीरिया के टुकड़े होने तय हैं और इसका असर पूरे मध्य पूर्व में महसूस किया जाएगा।