सिंगापुर ऑनलाइन धोखाधड़ी सजा, फोटो (सो. एआई डिजाइन)
Singapore News In Hindi: ऑनलाइन ठगी और साइबर स्कैम के मामलों में लगातार हो रही बढ़ोतरी ने सिंगापुर सरकार को बेहद सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। नए कानून के तहत अब ठगी करने वालों को केवल जेल और भारी जुर्माने तक ही सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें कोड़ों (Judicial Caning) की सजा भी दी जाएगी। सरकार ने साफ कर दिया है कि 30 दिसंबर से यह कानून प्रभावी हो जाएगा और इसका उद्देश्य धोखेबाजों में कानून का डर पैदा करना है।
सिंगापुर की संसद ने पिछले महीने आपराधिक कानून में अहम संशोधन को मंजूरी दी थी। गृह मामलों के मंत्रालय (MHA) के मुताबिक, ये बदलाव इसलिए जरूरी थे ताकि कानून को अधिक प्रभावी, निष्पक्ष और बदलते अपराध के तरीकों के अनुरूप बनाया जा सके। खासतौर पर ऑनलाइन फ्रॉड, स्कैम सिंडिकेट और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े अपराधों पर लगाम कसने के लिए सज़ाओं को और कड़ा किया गया है।
नए नियमों के तहत स्कैमर्स, ठगी करने वाले एजेंटों और स्कैम सिंडिकेट के सदस्यों को 6 से लेकर 24 कोड़े तक की अनिवार्य सजा दी जा सकेगी। वहीं जो लोग जानबूझकर अपना बैंक अकाउंट, सिम कार्ड या निजी जानकारी ठगी या मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दूसरों को देते हैं, उन्हें 12 कोड़े तक की वैकल्पिक सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, अन्य गंभीर फ्रॉड मामलों में भी अदालत को कैनिंग की सज़ा देने का अधिकार होगा।
सरकार के इस फैसले के पीछे आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। गृह और विदेश मामलों की वरिष्ठ मंत्री सिम ऐन के अनुसार, वर्ष 2020 से 2025 की पहली छमाही तक सिंगापुर में दर्ज कुल अपराधों में से करीब 60 प्रतिशत सिर्फ ठगी से जुड़े रहे हैं। इस दौरान लगभग 1.9 लाख ठगी के मामले सामने आए, जिनमें लोगों को करीब 3.7 अरब सिंगापुर डॉलर (लगभग 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर) का नुकसान हुआ।
सिंगापुर की गवर्नमेंट टेक्नोलॉजी एजेंसी के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा सामने आने वाले स्कैम में फिशिंग फ्रॉड, फर्जी नौकरी के ऑफर, ई-कॉमर्स और ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी ठगी, जल्दी अमीर बनने के नाम पर निवेश स्कैम और खुद को सरकारी या बैंक अधिकारी बताकर की जाने वाली ठगी शामिल हैं।
कैनिंग यानी कोड़ों की सज़ा सिंगापुर में कोई नई बात नहीं है। यह एक न्यायिक शारीरिक सजा है जिसमें रतन की छड़ी से नंगे नितंबों पर कोड़े मारे जाते हैं। आमतौर पर यह सजा 50 वर्ष से कम उम्र के पुरुष अपराधियों को दी जाती है और पहले से ही डकैती, यौन अपराध और गंभीर हिंसक मामलों में लागू है।
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यह सजा ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से चली आ रही है और मलेशिया तथा ब्रुनेई जैसे देशों में भी दी जाती है। हालांकि, मानवाधिकार संगठनों के बीच यह सज़ा अक्सर विवाद का विषय रही है। सरकार का मानना है कि ठगी से लड़ना अब राष्ट्रीय प्राथमिकता बन चुका है और कड़े कानून ही इस अपराध पर प्रभावी रोक लगा सकते हैं।