
पाक में आतंकवाद के खिलाफ जारी हुआ फतवा, ( सांकेतिक एआई, फोटो )
Pakistan News Hindi: पाकिस्तान में इन दिनों आत्मघाती हमलों की घटनाएं खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी हैं। खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों में आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है, जहां सेना और सुरक्षा ठिकानों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।
आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2024 में अब तक 25 आत्मघाती हमले हो चुके हैं और इनमें करीब 100 पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं। सिर्फ नवंबर महीने में ही सुसाइड अटैक की 4 बड़ी घटनाएं हुईं, जिसने देश के सुरक्षा ढांचे की कमजोरियों को उजागर कर दिया।
बढ़ती चुनौतियों के बीच पाकिस्तान की सरकार अब धार्मिक नेताओं का सहारा ले रही है। इसी सिलसिले में देश के 500 मौलवियों ने एक संयुक्त फतवा जारी किया है, जिसमें साफ कहा गया है कि आत्मघाती हमला न सिर्फ इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि यह शरई तौर पर ‘हराम’ भी है। यह फतवा पाक उलेमा काउंसिल समेत कई अन्य धार्मिक संगठनों के प्रतिष्ठित मौलवियों ने मिलकर जारी किया है।
फतवे में कहा गया है कि फिदायीन हमलों का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है। यह धर्म के मूल सिद्धांतों शांति, भाईचारे और मानव जीवन की रक्षा के ठीक विपरीत हैं। मौलवियों का कहना है कि ऐसे हमलों के नाम पर युवाओं को गुमराह किया जा रहा है और उन्हें धर्म के गलत अर्थ समझाकर हिंसा की ओर धकेला जा रहा है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि कई आतंकी समूह संगठित होकर बड़े हमलों की योजना बना रहे हैं। रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया था कि कुछ संगठन नए आत्मघाती दस्ते तैयार कर चुके हैं, जिनका मकसद सरकारी ठिकानों, पुलिस चेकपोस्ट और सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना है। इसी के बाद सरकार ने धार्मिक नेतृत्व से पहल करने की अपील की थी।
मुफ्तियों के संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि “इस्लाम और पाकिस्तान अविभाज्य हैं” और देश की स्थिरता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां धार्मिक रूप से भी गलत हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्रालय ने फतवे का स्वागत करते हुए उम्मीद जताई है कि इससे आतंकवाद के खिलाफ जनसमर्थन जुटाने में मदद मिलेगी।
फतवे में विशेष रूप से पाकिस्तान के युवाओं से अपील की गई है कि वे आतंकी संगठनों के बहकावे में न आएं। मौलवियों ने स्पष्ट किया कि धर्म के नाम पर हिंसा या आत्मघाती कार्रवाई को जायज ठहराना इस्लाम की मूल शिक्षाओं का अपमान है।
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लगातार बढ़ते हमलों और बिगड़ते सुरक्षा हालात के बीच यह फतवा पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो देश में चरमपंथ के खिलाफ सामाजिक और धार्मिक प्रतिरोध को मजबूत कर सकता है।






