
अफगानिस्तान मुद्दे पर ईरान की क्षेत्रीय बैठक, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan Afghanistan Tension: ईरान ने अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति को लेकर रविवार को तेहरान में एक अहम क्षेत्रीय बैठक की मेजबानी की। इस बैठक का मकसद अफगानिस्तान से जुड़े राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर विचार करना और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना था। बैठक में चीन, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और रूस ने हिस्सा लिया, लेकिन अफगानिस्तान खुद इस बैठक से दूर रहा।
बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंध बनाए रखना बेहद जरूरी है, ताकि वहां के आम लोगों की स्थिति में सुधार हो सके। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया कि अफगानिस्तान को क्षेत्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था से जोड़ना स्थिरता के लिए अहम है। बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई कि वह अफगानिस्तान पर लगे प्रतिबंध हटाए और उसकी जमी हुई संपत्तियों को मुक्त करे।
हालांकि अफगानिस्तान को इस बैठक में आमंत्रित किया गया था लेकिन तालिबान सरकार ने इसमें भाग न लेने का फैसला किया। अफगान विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि वह पहले से ही क्षेत्रीय संगठनों और मंचों के जरिए पड़ोसी देशों के संपर्क में है और इन माध्यमों से सकारात्मक प्रगति हो रही है। इसलिए इस बैठक में शामिल होने की जरूरत नहीं समझी गई। तालिबान की ओर से इससे ज्यादा कोई विस्तृत वजह नहीं बताई गई।
तालिबान के इस फैसले पर पाकिस्तान की ओर से तंज भी देखने को मिला। पाकिस्तान के पूर्व विशेष प्रतिनिधि आसिफ दुर्रानी ने कहा कि इस तरह की बैठकों से दूरी बनाना तालिबान की राजनीतिक परिपक्वता की कमी को दर्शाता है। बैठक में यह भी तय किया गया कि अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की अगली बैठक तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात में होगी। इसके अलावा मार्च महीने में इस्लामाबाद में विशेष दूतों की अगली बैठक आयोजित करने पर भी सहमति बनी।
बैठक में सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई। शामिल देशों ने आतंकवाद, ड्रग तस्करी और मानव तस्करी के खिलाफ मिलकर काम करने की जरूरत बताई। साथ ही अफगानिस्तान में किसी भी तरह की विदेशी सैन्य मौजूदगी का विरोध किया गया। इसके अलावा पड़ोसी देशों से लौट रहे अफगान शरणार्थियों की सम्मानजनक और सुरक्षित वापसी में सहयोग देने पर भी जोर दिया गया।
गौरतलब है कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी हद तक अलग-थलग पड़ गया था। हालांकि पिछले एक साल में कुछ देशों के साथ उसके कूटनीतिक रिश्ते बेहतर हुए हैं और तालिबान सरकार टैक्स के जरिए अरबों डॉलर जुटा रही है, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति अब भी बेहद कमजोर बनी हुई है। आज भी लाखों अफगान नागरिक विदेशी मदद पर निर्भर हैं। प्राकृतिक आपदाएं और पाकिस्तान से लौट रहे शरणार्थी हालात को और मुश्किल बना रहे हैं।
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बैठक में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के प्रयासों का भी समर्थन किया गया। हाल के महीनों में सीमा पर हुई झड़पों और काबुल में हुए धमाकों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई थी। हालांकि कतर की मध्यस्थता से संघर्षविराम काफी हद तक कायम है फिर भी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो सकी है।






