
बांग्लादेश में भारत विरोधी हिंसा के बीच 8000 भारतीय छात्र फंसे (सोर्स-सोशल मीडिया)
MBBS Safety Risk Bangladesh: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद फैली अराजकता ने वहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हजारों भारतीय मेडिकल छात्रों को खौफ के साये में जीने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान में लगभग 8,000 भारतीय छात्र वहां के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में मौजूद हैं, जो उग्र भारत विरोधी प्रदर्शनों के कारण हॉस्टलों में कैद रहने को विवश हैं।
हाल ही में हुई राजनीतिक हत्याओं के बाद हालात इतने खराब हो गए हैं कि छात्र अपनी भारतीय पहचान छिपाकर रहने को मजबूर हैं। यह स्थिति उन छात्रों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है, जो एक बेहतर भविष्य का सपना लेकर पड़ोसी देश गए थे।
भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस अक्सर 50 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच होती है, जो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बहुत बड़ी राशि है। इसके विपरीत, बांग्लादेश में MBBS का पूरा कोर्स 27 से 45 लाख रुपये में पूरा हो जाता है। यही वह किफायती बजट है जो हर साल हजारों भारतीय युवाओं को वहां खींच ले जाता है।
कम फीस के साथ-साथ नीट क्वालीफाई करने के बाद स्थानीय एजेंटों के जरिए मिलने वाला आसान दाखिला और भारत से भौगोलिक निकटता इसे एक आकर्षक विकल्प बनाती थी। लेकिन आज वही छात्र सुरक्षा की कमी के कारण इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।
बांग्लादेश में पढ़ने वाले कुल भारतीय छात्रों में जम्मू-कश्मीर के छात्रों की तादाद सबसे ज्यादा है। ढाका और चिटागांग जैसे शहर इन छात्रों के प्रमुख केंद्र रहे हैं, खासकर ढाका यूनिवर्सिटी भारतीय MBBS छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय है।
ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष जीतेंद्र सिंह ने सरकार को पत्र लिखकर बताया है कि इस समय छात्रों की परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके कारण वे संकट के बावजूद भारत वापस नहीं लौट पा रहे हैं। छात्रों को डर है कि अगर वे इस समय परीक्षा छोड़ते हैं, तो उनका साल खराब हो जाएगा और अगर रुकते हैं, तो हिंसा का शिकार हो सकते हैं।
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बदलते हालात के बीच अब अभिभावकों में भारी नाराजगी और डर देखा जा रहा है। दिल्ली और अन्य शहरों के कई पेरेंट्स अब एजेंटों से एडमीशन रिफंड की मांग कर रहे हैं और नए छात्र वहां जाने से कतरा रहे हैं।
छात्रों ने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए क्योंकि भारतीय होने का खुलासा करना वहां खतरे को दावत देने जैसा हो गया है। भारत में कठिन प्रतिस्पर्धा और महंगी पढ़ाई के कारण चुना गया यह विकल्प अब जान के खतरे में बदल गया है, जिसने भविष्य के इन डॉक्टरों को एक अनिश्चित मोड़ पर खड़ा कर दिया है।






