
भारत और ईरान के बीच संबंध (सोर्स- सोशल मीडिया)
India Iran Trade Relations: भारत और ईरान के बीच का संबंध हजारों साल पुराना है, जो दोनों देशों की प्राचीन सभ्यताओं की गहराई को दर्शाता है। भले ही 1947 के विभाजन के बाद भौगोलिक निकटता खत्म हो गई हो, लेकिन दोनों देशों ने 1950 में कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। तेल व्यापार से लेकर चाबहार पोर्ट में निवेश तक, यह संबंध विभिन्न उतार-चढ़ावों के बावजूद आज भी महत्वपूर्ण बना हुआ है। वर्तमान में, दोनों देश ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से सहयोग बढ़ा रहे हैं।
भारत और ईरान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध 1950 में स्थापित हुए थे। हालांकि, 1947 से पहले दोनों देश सीमा भी साझा करते थे। शुरुआती दौर में, ईरान ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में पाकिस्तान का समर्थन किया, जिससे संबंधों में तनाव आया। स्थिति तब और बिगड़ी जब ईरान ने भारत के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान को अपने क्षेत्र का इस्तेमाल करने की अनुमति दी। हालाकि, 1988 में मजार-ए-शरीफ में 11 ईरानी राजनयिकों की हत्या के बाद पाकिस्तान से ईरान की दोस्ती टूटी।
इसके बाद, 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ईरान यात्रा के बाद तेल व्यापार शुरू हुआ और 2001 तथा 2003 में रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए तेहरान और नई दिल्ली घोषणाओं पर हस्ताक्षर किए गए।
भारत और ईरान के आर्थिक संबंध मुख्य रूप से कच्चे तेल पर आधारित रहे हैं। भारत ईरान से भारी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण तेल आयात कम हुआ, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं हुआ। तेल के अलावा, भारत ईरान से सूखे मेवे (जैसे पिस्ता, बादाम, खजूर), केसर और रसायन आयात करता है।
इसके बदले में, भारत ईरान को दवाइयां, चावल, चाय, गेहूं, चीनी, कॉफी और कपड़े का निर्यात करता है। व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए, दोनों देश रुपया और रियाल में व्यापार करते हैं। भारत ईरान के चाबहार पोर्ट और संबंधित रेलवे प्रोजेक्ट में भी महत्वपूर्ण निवेश कर रहा है, जो क्षेत्र में कनेक्टिविटी के लिए महत्वपूर्ण है।
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ईरान, भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) में एक महत्वपूर्ण भागीदार है, जो यूरोप और मध्य एशिया तक पहुंच को आसान बनाएगा। दोनों देश ऊर्जा सुरक्षा, ट्रांजिट, फार्मा, आईटी और माइनिंग में सहयोग बढ़ा रहे हैं। सांस्कृतिक रूप से, फारसी भाषा और सूफीवाद ईरान से ही भारत आए थे, जिसने दोनों देशों के बीच सभ्यतागत सेतु का काम किया। रक्षा संबंधों की बात करें तो, दोनों देश आतंकवाद पर एक स्पष्ट रुख साझा करते हैं और नियमित रूप से रक्षा वार्ता करते हैं और खुफिया जानकारी साझा करते हैं।






