सांकेतिक तस्वीर (फोटो- सोशल मीडिया)
तेहरान: ईरान इजराइल को अपना कट्टर दुश्मन मानता है। दोनों देश इन दिनों भीषण जंग लड़ रहे हैं। ईरान यहूदियों को फूटी आंख पसंद नहीं करता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ईरान में हजारों यहूदी रहते हैं, जो किसी भी हाल में ईरान छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं।
ईरान में यहूदियों सालों से यहां रह रहे हैं, जिनका अपना अलग प्रार्थना स्थल, स्कूल और बस्तियां हैं, और वे तमाम खतरों के बाद भी ईरान छोड़कर इजराइल नहीं जाना चाहते हैं। आइए आपको बताते हैं ईरान में रहने वाले यहूदियों का इतिहास, साथ ही ये भी कि वे क्यों ईरान छोड़कर इजराइल नहीं जाना चाहते हैं।
यहूदी समुदाय सदियों से ईरान में रहते आ रहे हैं। इस्लामिक क्रांति से पहले यह समुदाय अपने चरम पर था और उस समय ईरान में लगभग एक लाख यहूदी रहते थे। हालांकि, वर्तमान में यह संख्या घटकर लगभग 9,000 रह गई है। आज भी तेहरान, शिराज और इस्फ़हान जैसे शहरों में यहूदी समुदाय की उपस्थिति अधिक है। इजराइल ने कई बार ईरान में रहने वाले यहूदियों को दुश्मन देश छोड़ने के लिए अभियान चलाए हैं, लेकिन उन्होंने हर बार इससे इंकार किया। वे अपनी पीढ़ियों से जुड़े संबंध, आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा जैसे कारणों से ईरान में ही रहना पसंद करते हैं।
ईरान में यहूदी समुदाय की संख्या भले ही बहुत कम हो, लेकिन उनका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत विशेष है। यह समुदाय विश्व के सबसे प्राचीन यहूदी समुदायों में से एक माना जाता है। इसका प्रमुख प्रमाण ‘एस्तेर की पुस्तक’ में मिलता है, जो दर्शाती है कि यहूदी समुदाय ने ईरान के इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान के यहूदी अपनी पुरानी विरासत और सांस्कृतिक जड़ों को आसानी से नहीं छोड़ते।
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ईरान में लगभग 30 यहूदी प्रार्थनास्थल सक्रिय हैं। यह समुदाय अपने लिए स्कूलों और रेस्टोरेंट का भी संचालन करता है। उन्हें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बिना किसी हस्तक्षेप के निभाने की पूरी स्वतंत्रता है। ईरान सरकार ने उन्हें आधिकारिक धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है, और उनके अधिकारों की सुरक्षा देश के संविधान और कानूनों के तहत सुनिश्चित की गई है। इसके अतिरिक्त, संसद में यहूदी समुदाय के लिए एक विशेष प्रतिनिधि की नियुक्ति का प्रावधान भी है।