डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन (फोटो- सोशल मीडिया)
Denmark: दुनियाभर में बढ़ती आबादी एक बड़ी समस्या है। इसे रोकने के लिए नसबंदी को सबसे सफल तरीका माना जाता है। लेकिन जब यही काम देश की सरकारें जबरदस्ती करने लगे तो ये किसी सजा से रम नहीं है। आपातकाल को दौर में भारत के लोगों ने भी संजय गांधी की जिद्द का कीमत चुकाई है। अब दुनिया के एक देश सरकार ने इसे लेकर बड़ा कदम उठाने का फैसला किया है। जहां करीब तीस से अधिक समय तक महिलाओं को जबरदस्ती कॉपर टी लगाया गया, वो भी जब उनकी उम्र मां बनने की थी तब।
हम बात कर रहे हैं यूरोपीय देश डेनमार्क की। यहां की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने अब पिछली सरकारों द्वारा नसबंदी के नाम पर जनता पर किए अत्यातचारों के लिए मांफी मांगने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि वो खुद जनता के बीच जाएंगी और मांफी मांगेंगी। आज के समय में इसे एक बड़ा और सहासी कदम माना जा रहा है।
डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसन बुधवार, 24 सितंबर को ग्रीनलैंड का दौरा करेंगी, जो डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है। इस दौरान वे वहां उन महिलाओं से व्यक्तिगत रूप से माफी मांगेंगी, जो दशकों पुराने जबरन गर्भनिरोधक कार्यक्रम की शिकार हुई थीं। यह माफी एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो ग्रीनलैंड और डेनमार्क के बीच के संवेदनशील संबंधों में बदलाव की ओर संकेत देता है।
डेनमार्क की संसद में ग्रीनलैंड का प्रतिनिधित्व करने वाली सांसद आजा चेमनिट्ज ने कहा, “यह माफी न सिर्फ उन महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे ग्रीनलैंड समाज के लिए बेहद अहम पल होगा।” रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 के दशक के अंत से लेकर 1992 तक, डेनमार्क के अधिकारियों ने लगभग 4,500 इनुइट महिलाओं को उनकी मर्जी के बिना गर्भनिरोधक यंत्र (कॉपर-टी जैसी डिवाइस) लगाने के लिए मजबूर किया था। इनमें से करीब आधी महिलाएं प्रजनन क्षमता की उम्र में थीं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य इनुइट समुदाय में जन्म दर को नियंत्रित करना था।
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इस क्रूर नीति का असर लंबे समय तक महिलाओं के जीवन पर पड़ा। कई महिलाएं बांझ हो गईं और अधिकांश को गंभीर शारीरिक या मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। यह मामला उन कई विवादास्पद मुद्दों में शामिल है, जिनकी वजह से ग्रीनलैंड और डेनमार्क के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। इनमें जबरन गोद लिए जाने और इनुइट बच्चों को उनके परिवारों से अलग करने जैसे मामले भी शामिल हैं।