बिलावल भुट्टो, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
न्यूयॉर्क: जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। इसके चलते पाकिस्तान में खलबली मच गई है। भारत की इस ‘जल कूटनीति’ ने पाकिस्तान को बुरी तरह असहज कर दिया है, और वहां के नेता व सैन्य अधिकारी समय-समय पर भारत को चेतावनियां दे रहे हैं। हालांकि, वे भली-भांति जानते हैं कि उनकी ये धमकियां भारत पर कोई असर नहीं डालेंगी।
पाकिस्तानी सेना और वहां की सरकार को ऑपरेशन सिंदूर में मिली करारी हार से यह साफ हो गया है कि भारत पर हमला करना खुद को ही नुकसान पहुंचाने जैसा है। इसी कारण अब पाकिस्तान अलग-अलग देशों से मदद की गुहार लगा रहा है। इसी सिलसिले में भारत के खिलाफ उकसावे भरा बयान देने वाले बिलावल भुट्टो जरदारी अब इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र (UN) पहुंचे हैं।
पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सदस्य देशों को भारत की जल नीति से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में जानकारी दी।प्रतिनिधिमंडल ने चेताया कि अगर सिंधु जल संधि को निलंबित किया गया तो पाकिस्तान को जल संकट, खाद्य आपूर्ति में कमी और पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
बिलावल भुट्टो ने हाल ही में आरोप लगाया कि भारत ने सिंधु जल संधि को एकतरफा रूप से निलंबित कर इसे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिससे लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, बल्कि गंभीर मानवीय संकट को भी जन्म दे सकता है।
संयुक्त राष्ट्र में अपने बयान के दौरान बिलावल ने यह भी कहा कि भारत युद्ध से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के अनुमोदित प्रस्तावों की अनदेखी कर रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान उन देशों में से है जो आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। सिंधु जल संधि पर रोक लगाए जाने के बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसे बहाल करने की लगातार अपील कर रहा है।
गौरतलब है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए थे, जिनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना भी शामिल था। यह समझौता भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के उस समय के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ था, जिसमें विश्व बैंक ने एक मध्यस्थ के रूप में सहयोग किया था। इसका उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के जल के बंटवारे को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना और भविष्य में होने वाले विवादों को टालना था।