
शेख हसीना और खालिदा जिया (डिजाइन फोटो)
Khaleda Zia Death: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन हो गया है। वह BNP यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं, जिसे आजकल एशिया में काफी अटेंशन मिल रहा है। जेल, बेल और सत्ता के बीच उनकी कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कमतर नहीं है। खालिदा जिया ने कभी राजनीतिक बदलाव लाने के लिए शेख हसीना के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थीं। लेकिन बाद में हसीना की कट्टर दुश्मन बन गईं।
इस दुश्मनी को बांग्लादेश में ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ के नाम से जाना जाता है, जिसके दो मुख्य किरदार थे- खालिदा जिया और शेख हसीना। इनमें से एक का निधन हो गया है, जबकि दूसरी ने भारत में शरण ली है। दोनों बांग्लादेश की सबसे ताकतवर हस्तियों में से थीं। जब वे सत्ता में होती थीं, तो एक-दूसरे पर कहर बरपाती थीं। लेकिन यह सब कैसे शुरू हुआ? समान लक्ष्य वाले लोग इतने कट्टर दुश्मन कैसे बन गए? आइए ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ की कहानी में गहराई से जानते हैं।
खालिदा जिया मिलिट्री शासक जियाउर रहमान की पत्नी थीं। 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ ‘मुक्ति युद्ध’ में अहम भूमिका निभाई थी। जिस व्यक्ति ने नए बांग्लादेश की स्थापना की थी उसी की हत्या कर दी गई। अपने शुरुआती दिनों में बांग्लादेश भी पाकिस्तान की तरह ही अस्थिर रहा। यहां भी राजनैतिक अस्थिरता और तख्तापलट आम बात थी।बांग्लादेश में इस अस्थिरता के बीच खालिदा जिया ने अपने पति को खो दिया। उनके पति एक मिलिट्री शासक थे, लेकिन उनके पतन की कहानी भी दिलचस्प है।
जियाउर रहमान ने 1977 में सेना प्रमुख के तौर पर सत्ता संभाली। उन्होंने 1978 में BNP की स्थापना की। 1981 में उनकी भी एक मिलिट्री तख्तापलट में हत्या कर दी गई। तब तक खालिदा जिया का राजनीति में कोई दखल नहीं था। अपने पति की मौत के बाद पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया। खालिदा जिया आगे आईं और कमान संभाली।
खालिदा जिया (सोर्स- सोशल मीडिया)
उन्होंने मिलिट्री तानाशाही के खिलाफ एक लोकप्रिय आंदोलन का नेतृत्व किया। उनके साथ शेख हसीना भी राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हो रही थीं। उनके संयुक्त विरोध के कारण 1990 में लोकतंत्र की बहाली की मांग को गति मिली। तत्कालीन तानाशाह और पूर्व सेना प्रमुख, एच.एम. इरशाद को सत्ता से हटा दिया गया। इससे खालिदा जिया का एक गृहिणी से प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया।
जब 1991 में खालिदा जिया पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, तो उनकी पार्टी को पहले से ही एक मज़बूत सियासी ताकत का सामना करना पड़ा। उस चुनाव में खालिदा जिया की मुख्य प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना की अवामी लीग थी। खालिदा जिया को अपने फौजी शासक पति जियाउर रहमान की विरासत मिली थी, जबकि शेख हसीना बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के हीरो की बेटी थीं। 1991 के बाद हर चुनाव में इन दोनों के बीच टकराव देखने को मिला।
बैटल ऑफ बेगम्स इन्फोग्राफिक (AI जनरेटेड)
इसका कारण यह था कि बांग्लादेश की राजनीति लगभग पूरी तरह से इन दो महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती थी। वे इतनी शक्तिशाली थीं कि आज तक बांग्लादेश में कोई तीसरी ताकत उभर नहीं पाई है। मुहम्मद यूनुस का उदय एक जन आंदोलन का नतीजा था, वह खुद से राजनीतिक रूप से सत्ता में नहीं आए थे।
साल 1975 में शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान की एक मिलिट्री तख्तापलट में हत्या कर दी गई। कुछ महीने बाद खालिदा जिया के पति जियाउर रहमान सत्ता में आए और 1977 में राष्ट्रपति बने। 1981 में उनकी भी हत्या कर दी गई। 1980 के दशक में दोनों महिलाओं ने मिलिट्री शासक हुसैन मुहम्मद इरशाद के खिलाफ हाथ मिलाया। जिसके बाद 1990 में उन्हें सत्ता से हटा दिया गया, लेकिन दोनों महिलाओं के बीच राजनीतिक दुश्मनी और बढ़ गई। 1991 में खालिदा जिया पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और 1996 तक सत्ता में रहीं।
1996 में चुनाव हुए और शेख हसीना पांच साल के कार्यकाल के लिए सत्ता में आईं और 2001 तक पद पर रहीं। इस दौरान खालिदा जिया को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जिसमें उनके और उनके बेटे तारिक रहमान के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई भी शामिल थी। 2001 में खालिदा जिया फिर से सत्ता में आईं। इस बार जमात-ए-इस्लामी पार्टी उनकी सरकार का हिस्सा थी। 2001 से 2006 तक का उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा। उनके दूसरे कार्यकाल में भारत विरोधी बयानबाजी और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्रोह को समर्थन देने के आरोप लगे।
जिया के बड़े बेटे तारिक रहमान पर भी समानांतर सरकार चलाने और भ्रष्टाचार के आरोप लगे। शेख हसीना इन मुद्दों पर बहुत मुखर थीं। 2004 में शेख हसीना के काफिले पर ग्रेनेड से हमला किया गया, जिसमें वह बाल-बाल बचीं। शेख हसीना ने ढाका में हुए इस हमले के लिए जिया सरकार और रहमान को दोषी ठहराया। खालिदा जिया की सरकार खत्म होने के साथ ही शेख हसीना की स्थिति एक बार फिर मजबूत हो गई। इस बार खालिदा जिया को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता लौट आई और सत्ता एक अंतरिम कार्यवाहक सरकार को सौंप दी गई। मिलिट्री शासन मजबूत बना रहा।
इसके बाद 2009 में शेख हसीना सत्ता में लौटीं और तब से लेकर पिछले साल तक पद पर बनी रहीं। 2018 में खालिदा जिया को दो अलग-अलग भ्रष्टाचार के मामलों में 17 साल जेल की सज़ा सुनाई गई। उनकी पार्टी ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया, जबकि शेख हसीना की सरकार ने कहा कि इन मामलों में उनका कोई हाथ नहीं है। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता लौट आई।
शेख हसीना (सोर्स- सोशल मीडिया)
2020 में खालिदा जिया को रिहा कर दिया गया और ढाका में एक किराए के घर में नज़रबंद रखा गया। उनका इलाज एक प्राइवेट अस्पताल में चलता रहा। अगस्त 2024 में हुए दंगों के बाद शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी और भागना पड़ा। उन्होंने भारत में शरण ली। जब मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार की बागडोर संभाली, तो खालिदा जिया को मेडिकल इलाज के लिए विदेश जाने की इजाज़त मिल गई। शेख हसीना ने अपने शासनकाल में उन्हें दोबारा उभरने का मौका कभी नहीं दिया था।
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जनवरी 2025 में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उनके खिलाफ आखिरी भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया। वह फरवरी में होने वाले आम चुनावों में उम्मीदवार भी बन सकती थीं। उनके बेटे तारिक रहमान अब BNP के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। यह संघर्ष इसलिए भी याद रखा जाएगा क्योंकि जब उन्होंने 2020 में बीमारी के कारण जेल से रिहा होने की इजाज़त मांगी थी, तो उन्होंने इलाज के लिए विदेश जाने की इजाज़त के लिए शेख हसीना से 18 बार अपील की थी, लेकिन सरकार ने इसकी इजाज़त नहीं दी।
मुहम्मद यूनुस की सरकार ने उन्हें इलाज के लिए लंदन जाने की इजाजत दे दी। खालिदा जिया जनवरी में लंदन गईं और मई में बांग्लादेश लौट आईं। बांग्लादेश में आम चुनावों से पहले उनका निधन हो गया। खालिदा जिया कई सालों से सक्रिय राजनीति से दूर थीं। उनके बेटे तारिक रहमान पर भ्रष्टाचार और दूसरे अपराधों के कई गंभीर आरोप लगे थे। मुहम्मद यूनुस उनके लिए वरदान साबित हुए। बांग्लादेशी फिल्म ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ का एक मुख्य किरदार अब दुनिया छोड़कर जा चुका है। जिसके बाद इस लड़ाई का अंत हो गया है।






