15 जून को तय हुई थी बंटवारे की रूपरेखा, फोटो (सो.सोशल मीडिया)
India Pakistan History: हर तारीख अपने साथ अनगिनत कहानियां लेकर आती है। कुछ घटनाएं बीत चुकी होती हैं, लेकिन जिस दिन वे हुई थीं, हम उस दिन उनके असर और यादों को महसूस करते हैं। इतिहास में 15 जून ऐसी ही एक तारीख है। इसी दिन कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए एक राजनीतिक रेखा खींचने पर सहमति दी वो रेखा जिसने सब कुछ बांट दिया। यह बांट विभाजन तक़सीम का कारण बना: मुल्क, समुदाय, रिश्ते, संरक्षित इलाके, नदियां, तालाब और सबसे अहम इंसान।
एक भयानक खेल खेला गया। हिंदुस्तान का जिस्म बंट गया और उसका एक हिस्सा पाकिस्तान बन गया। इक़बाल की भविष्यवाणी और जिन्ना के ख्वाब की तलाश पंजाब के उस पार पहुंच गई। कई कारवां अनजाने रास्तों की ओर निकल पड़े।
15 जून 1947 का वह दिन जब अखिल भारतीय कांग्रेस ने नई दिल्ली में ब्रिटिश सरकार की विभाजन योजना को मंजूरी दी, जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से भी जाना जाता है। इस योजना की घोषणा भारत के अंतिम वायसराय, लॉर्ड माउंटबेटन ने की थी।
अगस्त 1947 में भारत का विभाजन देश के इतिहास की सबसे दुखद और हिंसक घटनाओं में से एक था। पाकिस्तान के निर्माण की मांग ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (स्थापित 1906, ढाका) ने की थी। उनका मानना था कि कांग्रेस के मुस्लिम सदस्यों को हिंदू सदस्यों के समान अधिकार नहीं मिलते और उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
1930 में मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग करने वाले पहले व्यक्ति अल्लामा इकबाल थे। उनका मानना था कि ‘हिंदू बहुल भारत’ में मुसलमानों के लिए अलग राज्य होना जरूरी है।इकबाल ने मुहम्मद अली जिन्ना और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अन्य नेताओं के साथ मिलकर एक नए मुस्लिम राज्य के गठन का प्रस्ताव तैयार किया। उस समय तक, जिन्ना लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम कर रहे थे, लेकिन 1930 तक उन्होंने भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंता जतानी शुरू कर दी। उन्होंने इसे कांग्रेस की नीतियों का परिणाम माना, और उस पार्टी पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया, जिसमें वह कभी खुद सदस्य भी रहे थे।
बंटवारे के बाद जाते लोग
1940 में लाहौर सम्मेलन के दौरान, जिन्ना ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग की। उस समय के कई मुस्लिम राजनीतिक समूह, जैसे खाकसार तहरीक और अल्लामा मशरिकी, धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के समर्थक नहीं थे। अधिकांश कांग्रेस नेता धर्मनिरपेक्ष थे और देश के विभाजन का विरोध कर रहे थे। महात्मा गांधी भी धार्मिक आधार पर विभाजन के खिलाफ थे और उनका मानना था कि हिंदू और मुसलमान एक ही देश में शांति से रह सकते हैं। गांधी ने कांग्रेस में मुसलमानों को बनाए रखने के लिए प्रयास किए, क्योंकि 1930 के दशक में कई मुसलमान पार्टी छोड़ चुके थे।
धार्मिक आधार पर अलग देश की मांग के बाद उत्तर भारत और बंगाल में हिंदू और मुसलमानों के बीच हिंसा फैल गई, जिससे मुसलमान असुरक्षित महसूस करने लगे। स्थिति ऐसी हो गई कि भारत में बड़े पैमाने पर गृहयुद्ध को रोकने का एकमात्र विकल्प विभाजन ही नजर आने लगा।
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1946 में, एक कैबिनेट मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता कराते हुए एक विकेंद्रीकृत भारत का प्रस्ताव रखा, जिसमें स्थानीय सरकारों को काफी शक्तियाँ दी जाने की बात थी। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया, जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र की अपनी मांग कायम रखी ब्रिटिश सरकार ने इसके बाद लॉर्ड माउंटबेटन की योजना के अनुसार भारत को दो भागों में बांटने का निर्णय लिया। 3 जून 1947 को माउंटबेटन ने स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 निर्धारित किया।
15 जून 1947 को माउंटबेटन योजना को मंजूरी मिली, जिसे अखिल भारतीय कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया। इस योजना के तहत पंजाब और बंगाल को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया गया। पश्चिम पंजाब का बड़ा मुस्लिम बहुल हिस्सा पाकिस्तान में शामिल हुआ, जबकि पश्चिम बंगाल हिंदू बहुल रहते हुए भारत में रहा। मुख्य मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल भी पाकिस्तान में गया, जो बाद में बांग्लादेश बन गया।
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इस विभाजन के दौरान व्यापक हिंसा हुई। लाखों लोग घर छोड़कर पलायन करने को मजबूर हुए। मुसलमान पाकिस्तान की ओर जा रहे थे, जबकि हिंदू और सिख भारत लौट रहे थे। विभाजन ने लाखों लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह बदल दी और कई लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए। इसके परिणामस्वरूप समुदायों के बीच झगड़े और हिंसा फैली, जिससे बड़ी संख्या में हत्याएं, बलात्कार और अपहरण जैसी घटनाएं सामने आईं।