नेपाल में सरकार के खिलाफ उतरे छात्र (फोटो- सोशल मीडिया)
Nepal Social Media Ban Protest: नेपाल में सोशल मीडिया बैन को लेकर हंगामा हो रहा है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हजारों छात्र और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ऐसा कदम उठाया है। हालात इतने बेकाबू हो गए हैं कि सरकार ने काठमांडू के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है और सेना को शूट-एंड-साइट का आदेश जारी कर दिया है।
यह बहुत हद तक एक साल पहले बांग्लादेश में हुए छात्र आंदोलन की तरह है, जहां छात्रों ने सालों से सत्ता कुर्सी पर बैठी शेख हसीना के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन किया था, और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा था। इससे पहले श्रीलंका में भी इसी तरह के आंदोलन हुए थे और अब नेपाल में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसके पीछे किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था का हाथ है? या ये केवल जनता का सरकार के प्रति गुस्सा है।
अमेरिका ने 2023 में बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप में सैन्य अड्डा बनने का प्रस्ताव दिया था। इसके पीछे अमेरिका का मकसद था कि वह इसके जरिए बांग्लादेश के साथ पूरे बंगाल की खाड़ी पर नजर रख सके और साथ ही चीन की हरकतों पर लगाम लगा सके।
From Kathmandu to towns across Nepal, the message is clear:
democracy cannot survive without freedom of speech and
accountability.
What’s happening in Nepal is not just a protest , it’s a people’s
uprising against censorship and corruption.
When a government bans X,… pic.twitter.com/Gpye9SvRUM
— 𝑺𝒉𝒂𝒉𝒆𝒆𝒏🌺 (@shaheena451) September 8, 2025
हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए अमेरिकी प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके कुछ महीनों बाद ही हसीना सरकार एक आरक्षण संबंधी बिल लेकर आई, जिसे लेकर देश के कई छात्र संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। अंततः शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा था। इस दौरान हसीना ने आरोप लगाया था कि बाहरी ताकतों के इशारे पर उनका तख्तापलट किया गया।
इसी तरह भारत के एक अन्य पड़ोसी देश श्रीलंका में भी 2022 में सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद वहां सत्ता में बदलाव हुआ। हालांकि आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई और ईंधन की कमी को इस आंदोलन के प्रमुख कारण माना गया, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका की चीन के साथ बढ़ती नजदीकी भी इन विरोध प्रदर्शनों की मुख्य वजह थी। इस स्थिति के चलते लंबे समय तक श्रीलंका की राजनीति के प्रमुख व्यक्ति रहे राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा।
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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन का करीबी माना जाता है। उनकी यह करीबी उनके हालिया फैसले पर भी नजर आती है। ओली ने देश विरोधी एजेंडा चलाने का आरोप लगाते हुए फेसबुक और इंस्टाग्राम समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाया है लेकिन इसमें चीन के किसी बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का नाम शामिल नहीं है।