
विधानसभा में हंगामा (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Public Trust Act Amendment: महाराष्ट्र सार्वजनिक न्यास व्यवस्था (दूसरा सुधार) विधेयक 2025 को लेकर मंगलवार को विधानसभा में जबरदस्त हंगामा हुआ। सरकार द्वारा शैक्षणिक अर्हता और 55 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता में ढील देने का प्रस्ताव अधिकांश सदस्यों को रास नहीं आया। सत्तापक्ष और विपक्ष—दोनों ही सदस्यों ने इसे गुणवत्ता को दरकिनार कर पिछला दरवाज़ा खोलने वाला प्रावधान बताते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज की।
विधि व न्याय मंत्री एड. आशिष जयस्वाल बार-बार सफाई देते रहे, लेकिन सदन का माहौल शांत न हो सका। अंततः सरकार को बैकफुट पर जाते हुए, मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बुधवार को विधेयक पर पुनः चर्चा कराने पर सहमति देनी पड़ी।
विधानसभा में विधेयक क्रमांक 92 मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया गया था। इसमें तीन वर्ष का अनुभव और 55% अंकों की शर्त दोनों को शिथिल करने का प्रस्ताव था। इसी बिंदु पर सबसे अधिक नाराजी व्यक्त की गई। भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने तीखे शब्दों में कहा कि यह सुधार गुणवानों को बाहर कर धनवानों के लिए रास्ता खोलता है।
उन्होंने नियमावली में संभावित गड़बड़ियों की ओर भी संकेत किया। राष्ट्रवादी काँग्रेस के जयंत पाटिल और ठाकरे गुट के भास्कर जाधव ने भी अर्हता में ढील पर गंभीर सवाल उठाए। कांग्रेस के अमीन पटेल ने दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास विधेयक भेजने की मांग की
विपक्ष ने आरोप लगाया कि विधेयकों पर चर्चा तय करने वाली गुट नेताओं की बैठक में केवल एक ही नेता को बुलाया गया और बाकी को दरकिनार किया गया। शिवसेना उबाठा के भास्कर जाधव ने सभापति के रुख पर नाराजी जताते हुए कहा कि विरोधियों को विश्वास में लेना ही नहीं है तो चर्चा भी नहीं करनी। क्या विपक्ष सिर्फ मूक बनकर बैठें। कितने भी विधेयक लाओ और पारित करो क्या यही नीति है। उनके वक्तव्य पर विपक्षी सदस्यों ने जोरदार समर्थन जताया।
यह भी पढ़ें – शीतसत्र में किसानों के मुद्दों पर विपक्ष का हल्ला बोल, विधान भवन परिसर में किया जोरदार आंदोलन
भाजपा विधायक एड. राहुल कुल ने विधेयक पर चर्चा की मांग की, लेकिन सभापति ने नियम 123 का हवाला देते हुए चर्चा संभव न होने की बात कही। इससे नाराज़ होकर कुल ने तीखी आपत्ति दर्ज की। क्यों नहीं बोलने दिया जा रहा। क्या चर्चा नहीं करनी। एड. कुल के सवाल को सत्ता और विपक्ष दोनों से समर्थन मिला। इसके बाद मुनगंटीवार, जयंत पाटिल, नाना पटोले समेत कई वरिष्ठ सदस्यों ने विधेयक की कमियों पर खुलकर बात की।
लगातार विरोध और बहस के बाद अंततः सरकार ने विधेयक पर आगे विचार करने के लिए मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बुधवार को विस्तृत चर्चा कराने का निर्णय लिया।






