
पीएम मोदी अमित शाह व ममता बनर्जी (कॉन्सेप्ट फोटो- डिजाइन)
West Bengal Politics: बिहार चुनाव में NDA की जबरदस्त जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि “जहां भी मां गंगा जाएंगी, बीजेपी उनके पीछे-पीछे जाएगी।” इसका मतलब है कि पश्चिम बंगाल के लिए बीजेपी का खास प्लान तैयार हैं। लेकिन क्या पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए जीतना उतना ही आसान होगा जितना बिहार में था?
पहले 2025 में दिल्ली में चुनाव हुए और अब बिहार में जिसमें बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की है। 2026 में चुनावी रथ चार बड़े राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश से होकर गुजरेगा। अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी शामिल हैं। इसके बाद 2027 में पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे।
एक तरह से भारत का राजनीतिक माहौल 2025 और 2029 के बीच अहम चुनावी घटनाओं से भरा रहेगा। पश्चिम बंगाल में चुनाव मई में होंगे और बंगाल में बीजेपी की राह मुश्किल होगी। क्योंकि वहां न तो बिहार से जुड़े मुद्दे होंगे और न ही बिहार से जुड़े समीकरण। नीतीश कुमार और चिराग पासवान जैसे साथियों के बिना भी बीजेपी को वहां अपनी पूरी ताकत लगानी होगी।
पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी पिछले कई सालों से बहुत मेहनत कर रही है। COVID-19 के दौरान हुए 2021 के चुनावों में भी बीजेपी ने ममता बनर्जी सरकार को सत्ता से हटाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। हालांकि, पिछले चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में न सिर्फ काफी बढ़ोतरी हुई, बल्कि उसकी सीटें भी 3 से बढ़कर 77 हो गईं। 294 सदस्यों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीतीं और अब 2026 के चुनावों में एक बार फिर दिलचस्प मुकाबला होने की उम्मीद है।
बीजेपी को बंगाल में फतह दिलाने के लिए पार्टी की पूरी सेंट्रल लीडरशिप को अपनी ताकत लगानी होगी और इसके लिए उसे मुसलमानों को लुभाना होगा। मुसलमान जरूरी नहीं कि बीजेपी को वोट दें। हालांकि, वहां भी बीजेपी को उन मुसलमानों तक पहुंचना होगा जो टीएमसी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। या तो मुसलमान बीजेपी को वोट दें या वे सीपीएम, सीपीआ और कांग्रेस की तरफ चले जाएं, जिससे बीजेपी वहां बिहार के सीमांचल जैसा परफॉर्म कर सके।
पीएम मोदी व अमित शाह (सोर्स- सोशल मीडिया)
अगर बीजेपी बंगाल में हार्ड-कोर हिंदुत्व की पॉलिटिक्स अपनाती है, तो उसके लिए हालात थोड़े मुश्किल हो सकते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पश्चिम बंगाल में, जहां 70 से 75% हिंदू मेजॉरिटी है, हिंदुत्व वाली पॉलिटिक्स क्यों नहीं चल पा रही है। इसकी वजह यह है कि करीब 30% मुस्लिम आबादी 50 सीटों पर सीधा टर्निंग फैक्टर है। 25 से 30 सीटों पर उनका असर ऐसा है कि वे वहां का माहौल बदल सकते हैं।
अगर 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव को देखें, तो बीजेपी को मुसलमानों का सपोर्ट नहीं मिला। बीजेपी 2026 के विधानसभा चुनाव में ऐसा होने से रोकना चाहती है और उसने मुसलमानों तक पहुंचने की तैयारी कर ली है। बीजेपी का मानना है कि वह राष्ट्रवादी मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन मुसलमानों के खिलाफ है जो देश को डराने की कोशिश करते हैं और जिनकी सोच कट्टर है।
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बीजेपी उन मुसलमानों तक पहुंच रही है जो टीएमसी के खिलाफ हैं, जो बहुत पिछड़े हैं, यानी पसमांदा मुसलमान। टीएमसी से नाखुश मुसलमान अक्सर सीपीएम और कांग्रेस की तरफ जाते हैं और उन्हें वोट देते हैं। लेकिन अब बीजेपी उन्हें अपने साथ लाने की पूरी कोशिश कर रही है। बीजेपी का प्लान है कि टीएमसी से नाखुश मुस्लिम वोटर सीपीआई, सीपीएम और कांग्रेस को पास न जाकर उनकी ओर आएं।
यह बात सब जानते हैं कि जिन घुसपैठियों को जबरदस्ती वोटर आई़डी और आधार कार्ड इस्तेमाल करने पर मजबूर किया गया है, वे वोट नहीं देंगे। लेकिन, एसआईआर में उन्हें खत्म कर दिया जाएगा। यह यहां एक बड़ा फैक्टर होगा। इसलिए SIR के सफाए के बाद बीजेपी हाईकमान ने इस देश के उन बचे हुए मुसलमानों को अपनी ओर खींचने की तैयारी कर ली है जो टीएमसी से नाराज हैं।
इस बीच पश्चिम बंगाल बीजेपी प्रेसिडेंट का एक बयान आया है। उन्होंने दावा किया कि पिछले तीन सालों में पश्चिम बंगाल में हुई पॉलिटिकल हिंसा में सबसे ज्यादा मौतें मुसलमानों की हुई हैं। मुसलमान ही मुसलमानों को मार रहे हैं। बीजेपी अब मुसलमानों से कह रही है कि उनके दुश्मन हिंदू नहीं हैं, बल्कि उनके दुश्मन मुसलमान हैं।
ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की सत्ता में हैं। उस समय टीएमसी ने 34 साल पुराने लेफ्ट के गढ़ को उखाड़ फेंका था और पहली बार सत्ता में आई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में दो सीटें जीती थीं और तब से वहां अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीन सीटें जीती थीं, लेकिन वोट शेयर 10 परसेंट था, जो बीजेपी का हौसला बढ़ाने के लिए काफी था।
ममता बनर्जी (सोर्स- सोशल मीडिया)
साल 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी 213 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में बनी रहीं। लेकिन बीजेपी ने भी इन चुनावों 77 सीटों पर जीत दर्ज की और मुख्य विपक्षी पार्टी बन गईं। 2024 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी 29 सीटें जीतने में कामयाब हुई, जबकि बीजेपी को सिर्फ 12 सीटें मिलीं। लेकिन एक सीट वाली कांग्रेस और शून्य पर पहुंच चुकी लेफ्ट की स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में मुख्य मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच तय है।
गौर करने वाली बात यह है कि बंगाल में 2026 में चुनाव होने हैं, और बीजेपी के लिए वहां सत्ता हासिल करना एक सपना ही बना हुआ है। RSS और बीजेपी संगठन की पूरी ताकत के बावजूद वे ममता के गढ़ को तोड़ने में नाकाम रहे हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 211 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई थी। 2021 में भी ममता की पार्टी ने 213 सीटें जीतीं। इस दौरान बीजेपी ने 77 सीटों के साथ अपनी स्थिति मज़बूत की, लेकिन वह सत्ता हासिल करने में नाकाम रही।
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सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का भगवा रथ बंगाल में ममता के खिलाफ सियासी रणभूमि में धंसता हुई दिखाई दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में ममता को कड़ी टक्कर दी थी। इसके बावजूद टीएमसी ने 42 में से 22 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने 18 सीटें जीतीं। 2024 के चुनाव में बीजेपी ममता के खिलाफ अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में नाकाम रही। 2024 में बीजेपी ने सिर्फ 12 सीटें जीतीं। लेकिन इस बार संघ इस गणित को बदलना चाहता है।
बीजेपी 2027 में उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे अपने मज़बूत गढ़ों में अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश करेगी। गोवा, मणिपुर और पंजाब में फरवरी-मार्च 2027 में चुनाव होने की उम्मीद है। गोवा में बीजेपी सत्ता में है, जबकि पंजाब में बीजेपी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में अप्रैल-मई 2027 में चुनाव होने की उम्मीद है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो सकते हैं।






