योगी आदित्यनाथ व अखिलेश यादव (डिजाइन फोटो)
लखनऊ: भारत के किसी भी हिस्से में चुनाव हो और जातीय समीकरणों का जिक्र न हो तो बात अधूरी रह जाती है। क्योंकि यहां जाति सियासत की जड़ है और उसी को सींचकर सत्ता का फल प्राप्त होता है। यही वजह है कि चाहे पंचायत के प्रधान का चुनाव हो या फिर देश के प्रधानमंत्री का जातीय गुणाभाग हर एक इंतिखाब का हिस्सा होता है।
उत्तर प्रदेश की 10 रिक्त विधानसभा सीटों में से 9 पर चुनावी जंग का ऐलान कर दिया गया है। इन सभी 9 सीटों के लिए 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। जबकि परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इन 9 सीटों पर जाति के आधार पर कौन कहां किस पर भारी पड़ेगा जानते हैं इस आर्टिकल में।
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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने वर्ष 2022 में करहल विधानसभा सीट जीती थी। लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद होने के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। सपा ने यहां से तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है। भाजपा ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। इस सीट पर यादव-मुस्लिम गठजोड़ काफी मजबूत बना हुआ है।
प्रयागराज फूलपुर विधानसभा सीट पर वर्ष 2022 में जिले के प्रवीण 1 पटेल ने जीत दर्ज की। फूलपुर से सपा के सिंबल पर मुस्तफा सिद्दीकी मैदान में हैं। प्रवीण पटेल लोकसभा चुनाव में भाजपा से सांसद बने थे। प्रवीण पटेल ने वर्ष 2017 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी। यहां कुर्मी मतदाताओं के साथ ही मौर्य और मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं।
मझवां विधानसभा उपचुनाव मिर्जापुर जिले की मझवां सीट भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के विनोद बिंद के इस्तीफे से खाली हुई है। सपा ने पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी ज्योति बिंद को मैदान में उतारा है। बिंद राजभर जाति के अलावा कुर्मी समाज के मतदाता इस सीट पर निर्णायक स्थिति में हैं। ग्रामीण मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं।
कटेहरी उपचुनाव में सपा के कद्दावर नेता लालजी वर्मा जिले की कटेहरी सीट से विधायक थे। अब वह अंबेडकर नगर के सांसद बन गए हैं। सपा ने लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती दारमा को कटेहरी से टिकट दिया है। यहां दलितों के साथ कुर्मी और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
गाजियाबाद से भाजपा के अतुल गर्ग विधायक थे। वह विधानसभा सीट पर भाजपा सरकार में मंत्री भी रहे। अब वह सांसद बन गए हैं। इसके बाद यह सीट खाली हो गई। शहरी सीट होने के कारण यहां सवर्ण मतदाताओं का दबदबा है। दलित मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं। यहां बीजेपी की स्थिति मजबूत मानी जा रही है।
अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट से भाजपा के अनूप प्रधान वाल्मीकि विधायक थे। अनूप हाथरस से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने हैं। 2012 में रालोद और 2017 में भाजपा ने यह सीट जीती थी। यहां जाट, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी संख्या है।
संभल की कुंदरकी विधानसभा सीट से सपा के जियाउर्रहमान बर्क विधायक थे। उनके सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। सपा ने 2012-17 और 2022 में यह सीट जीती है। मुस्लिम बहुल आबादी के कारण यह सीट भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट से रालोद के चंदन चौहान 2022 में विधायक बने थे। हालांकि तब रालोद सपा के उनके बिजनौर के सांसद चुने जाने से यह सीट खाली हुई है। वर्ष 2012 में यहां बसपा और 2017 में भाजपा जीती थी, इस सीट पर जाट, दलित के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं का भी प्रभाव है।
कानपुर नगर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर वर्ष 2022 में सपा प्रत्याशी हाजी इरफान सोलंकी ने जीत दर्ज की है। सपा ने यहां से इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को टिकट दिया है। यहां मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है। ऐसे में बीजेपी के लिए यहां राह बेहद कठिन मानी जा रही है।
गोरखनाथ की याचिका के कारण मिल्कीपुर में चुनाव की घोषणा नहीं की गई है। हालांकि अब उन्होंने याचिका वापस लेने की घोषणा की है। फिलहाल कुल नौ सीटों पर चुनाव की घोषणा की गई है। अवधेश प्रसाद के सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई थी। सपा ने इस सीट पर अवधेश प्रसाद के बेटे को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
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