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लखनऊ: हाथरस भगदड़ कांड को लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत एक अलग ही रुख अख्तियार करती जा रही है। सभी सियासी दल अपने अपने फायदे नुकसान के हिसाब से भगदड़ को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। कोई मुआवजा बढ़ाने की मांग कर रहा है तो कोई घटना को साधारण बता रहा है। बाबा की तरफ उंगली उठाने से सब परहेज कर रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के निजाम वाले सूबे की पुलिस ने भी बाबा को क्लीन चिट दे दी है। लेकिन इन सब के बीच मायावती सबसे अलग चलती दिखाई दे रही हैं, और उन्होंने बाबा के ख़िलाफ मोर्चा खोल दिया है।
हाथरस के फुलरई में 2 जून को सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि ‘भोले बाबा’ के सत्संग के बाद भगदड़ मच गई। इस घटना में 123 लोग मारे गए, जबकि 31 लोग घायल हुए। घटना के बाद प्रदेश सरकार एक्शन में आई। सीएम योगी आदित्यनाथ ने घटना के न्यायिक जांच के आदेश दे दिए और तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन कर दिया गया। पुलिस की तरफ से भी दो सदस्यीय एसआईटी को घटना की जांच की जिम्मेदारी सौंप दी गई जिसने अपनी रिपोर्ट भी दे दी है।
एसआईटी की रिपोर्ट के बाद एसडीएम, सीओ, समेत 6 लोगों को निलंबित कर दिया गया। एसआईटी ने आयोजकों को घटना का जिम्मेदार ठहराया। लेकिन ‘भोले बाबा’ को भोला बताते हुए क्लीन चिट थमा दी। घटना के बाद आयोजकों की गिरफ्तारी भी हुई थी। लेकिन भोले बाबा पर न तो एफआईआर हुई न ही उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया। वैसे तो बाबा फरार हैं लेकिन ख़बर ये है कि वह यूपी में ही छिपा हुआ है। और यूपी पुलिस उसे ढूंढ नहीं पा रही है। जो कि असंभव सा लगता है।
दिल्ली का उपहार सिनेमा कांड आपने सुना होगा। 1997 में जहां आग लगने की वजह से आधिकारिक तौर पर 59 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के लिए सिनेमा के मालिक गोपाल अंशल और सुशील अंशल को जिम्मेदार मानते हुए आरोपी बनाया गया था। अदालत से उन्हें सजा भी मिली। ऐसे में हाथरस भगदड़ कांड में बाबा को भी जिम्मेदार माना जाना चाहिए। यही वजह है कि बाबा को मिली क्लीन चिट इसे बीजेपी के सियासी नफा नुकसान से जोड़ रही है। वहीं बाबा को क्लीन चिट मिलने को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सवाल उठाए हैं।
इस सवाल के जवाब में सूबे की सियासत पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा बताते हैं कि “इसके पीछे दलित वोटों की राजनीति है। भोले बाबा के समर्थकों में दलित भारी संख्या में हैं। दलितों में भी जाटवों में बाबा की अच्छी पहुंच है। इस चुनाव से पहले जाटव वोट बीजेपी के पाले में हुआ करता था। इसीलिए बीजेपी राज में अगर बाबा पर एफआईआर होती है तो इस चुनाव में छिटकने वाला जाटव वोट हमेशा के लिए हाथ से निकल सकता है।”
हाथरस कांड को लेकर सपा ने मुआवजा बढ़ाने की मांग की। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पीड़ितों से मिलने पहुंचे और मदद का आश्वासन दिया। लेकिन इन दोनों दलों के किसी नेता ने भी भोले बाबा के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। इसके पीछे का कारण बताते हुए नवलकांत सिन्हा कहते हैं कि “अखिलेश यादव ने बीता लोकसभा चुनाव ‘पीडीएम’ यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक का नारा देकर लड़ा। अब अगर वह बाबा के खिलाफ बोलते हैं तो पीडीएम से ‘डी’ गायब होने का डर है। वहीं, कांग्रेस की बात करें तो जाटव एक जमाने में उसका कोर वोटर हुआ करता था। जो कि बसपा और बीजेपी की तरफ मुड़ गया था। लेकिन इस बार उसने गठबंधन की तरफ वापसी की है। जिसे वह बरकरार रखना चाहती है।”
इन सबके बीच बसपा सुप्रीमो मायावती ने बिल्कुल उल्टी चाल चल दी है। इस उल्टी चाल के नेपथ्य की वजह बताते हुए नवलकांत सिन्हा कहते हैं कि “मायावती अपने आपको दलितों का सबसे बड़ा लीडर मानती हैं। इसलिए वह नहीं चाहती कि ऐसा कोई मैदान में आए या रह जाए जिसके पास उनसे ज्यादा दलित फॉलोवर्स हों। क्योंकि उनसे ज्यादा दलित फॉलोवर्स का किसी और के पास होना उनकी छवि के लिए नुकसानदायक होगा।”