कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की मांग की गई है। यह मांग किसी और ने नहीं बल्कि खुद सांसद इमरान मसूद ने की है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद इमरान मसूद ने रेल बजट पर बोलते हुए यह मांग की।
सांसद ने कहा कि सहारनपुर बहुत ही ऐतिहासिक शहर है, यहां मां शाकुंभरी देवी विराजमान हैं, सहारनपुर रेलवे स्टेशन का नाम मां शाकुंभरी देवी के नाम पर रखा जाना चाहिए। कांग्रेस के मुस्लिम सांसद की इस मांग को सुनकर भाजपा नेताओं के साथ-साथ समर्थक भी हैरान हैं।
माना जा रहा है कि यह एक ऐसा मुद्दा था जिसे बीजेपी भविष्य में चुनाव के समय पर भुना सकती थी। लेकिन इमरान मसूद ने पहले ही यह मांग कर के मुद्दे को खत्म कर दिया है। अब अगर सरकार नाम बदलती है तो क्रेडिट कांग्रेस को जाएगा। यदि नहीं बदलती है तो इसे मुद्दा बनाया जाएगा।
इसके साथ ही सांसद ने सहारनपुर के लिए रैपिड रेल, लखनऊ तक वंदे भारत की मांग की और सहारनपुर से इलाहाबाद करीब 700 किलोमीटर दूर है, जहां कचहरी भी है, लेकिन वहां के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। ऐसे में ट्रेन चलाई जानी चाहिए।
सहारनपुर से इलाहाबाद करीब 700 किलोमीटर दूर है, जहां न्यायालय भी है, लेकिन वहाँ के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। ऐसे में एक ट्रेन चलाई जाए।
सहारनपुर से लखनऊ के बीच अलीगढ़ होते हुए वंदे भारत ट्रेन चलाई जाए, जिससे AMU में पढ़ने वाले छात्र भी इसका लाभ ले सकें।
सरकार द्वारा रैपिड रेल… pic.twitter.com/lsvKX6H0Vb
— Congress (@INCIndia) March 17, 2025
सांसद ने कहा कि अलीगढ़ होते हुए सहारनपुर और लखनऊ के बीच वंदे भारत ट्रेन चलाई जानी चाहिए, ताकि एएमयू में पढ़ने वाले छात्र भी इसका लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा कि सरकार ने रैपिड रेल को मेरठ तक पहुंचाया है, इसलिए मेरा अनुरोध है कि इसे सहारनपुर तक भी लाया जाए, जिससे दिल्ली पर दबाव काफी हद तक कम हो जाएगा।
रेलवे में निजीकरण की नीतियों की आलोचना करते हुए सांसद ने कहा कि मैं रेल मंत्री से कहना चाहता हूं कि सुविधाओं के नाम पर पूरे रेलवे में जिस तरह से ठेका प्रथा लागू की गई है, उसका एक उदाहरण मैं आपको देता हूं।
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अंत में इमरान मसूद ने कहा कि मैं रतलाम से राजधानी एक्सप्रेस से सफर करके दिल्ली आया हूं। राजधानी के प्रथम श्रेणी की जो हालत मैंने देखी, उसमें मैंने पिछले 20 साल में दूसरी बार सफर किया, जब 20 साल पहले सफर किया था, तब व्यवस्था उससे काफी बेहतर थी। अब जब से व्यवस्था निजी हाथों में गई है, व्यवस्था बिगड़ गई है।