
पंकज चौधरी व अखिलेश यादव (डिजाइन फोटो)
UP BJP President: तकरीबन दो साल के लंबे इंतजार के बाद उत्तर प्रदेश को नया बीजेपी अध्यक्ष लगभग मिल चुका है! पंकज चौधरी के नाम से इकलौता नामांकन पत्र खरीदा और भरा गया। नामांकन के दौरान सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य प्रस्तावक के तौर पर मौजूद रहे। रविवार को यूपी बीजेपी अध्यक्ष के रूप में पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक ऐलान किया जाएगा।
बीजेपी के बड़े नेताओं के लखनऊ पहुंचने का सिलसिला शूरू हो गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक बड़े कार्यक्रम और धूमधाम के साथ नए अध्यक्ष का ऐलान किए जाने की संभावना है। इस बीच सवाल यह उठ रहा है कि उत्तर प्रदेस भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के लिए 2 साल का मंथन क्यों हुआ और पंकज चौधरी को सूबे में पार्टी की कमान देने के पीछे क्या रणनीति है?
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी इस बार सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए ऐसे नेता को पार्टी की कमान देना चाहती थी जो अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ फार्मूले का तोड़ बन जाए। क्योंकि इस फार्मूले के तहत अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर 2024 आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सूबे में शिकस्त दे दी थी। इस लिहाज से देखें तो पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिलने के पीछे की सबसे अहम वजह अखिलेश यादव हैं।
राजनैतिक जानकारों के मुताबिक, ओबीसी समाज से आने वाले केंद्रीय राज्य मंत्री पंकज चौधरी के हाथों में कमान सौंपने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी जाति है। वह कुर्मी समाज से आते हैं। पूर्वांचल के 20 जिलों में कुर्मी वोटरों का दबदबा है। यहीं 2024 में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। गठबंधन में शामिल अपना दल की कुर्मी नेता अनुप्रिया पटेल उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाई थीं।
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2024 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कुर्मी चेहरों को ज्यादा तवज्जो दी थी। जिसके चलते बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था। जबकि 2022 तक यह वोट बीजेपी के ही साथ था। अब बीजेपी चाहती है कि यह वोटबैंक फिर से पार्टी के साथ आ जाए। पूर्वांचल के 20 जिलों में इनकी आबादी करीब 9 फीसदी बताई जाती है। जो कि यादवों के बाद सबसे ज्यादा है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद की रेस में ओबीसी तबके से बनवारी लाल वर्मा और धर्मपाल लोधी का नाम भी शामिल था। लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि वह बदायूं से आते हैं। जबकि पंकच चौधरी महाराज गंज यानी पूर्वांचल से आते हैं। दूसरी तरफ धर्मपाल लोधी चौधरी के मुकाबले कम सक्रिय दिखाई देते हैं।






