भारत में 6G का आना आने वाले समय के लिए होगा खास। (सौ. Freepik)
नई दिल्ली: भारत अब 6G तकनीक के क्षेत्र में भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय दूरसंचार राज्य मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने बताया कि देश ने अब तक 111 से अधिक 6G रिसर्च प्रोजेक्ट्स को स्वीकृति दी है। इन योजनाओं के लिए सरकार ने कुल 300 करोड़ रुपये का फंड जारी किया है। मंत्री के अनुसार, “भारत अब 6G पेटेंट फाइलिंग में दुनिया के शीर्ष छह देशों में शामिल हो चुका है।”
6G तकनीक टेराहर्ट्ज़ (TeraHertz) फ्रीक्वेंसी बैंड्स पर काम करेगी, जो डेटा स्पीड को 1 टेराबिट प्रति सेकेंड तक ले जा सकती है। यह 5G से लगभग 100 गुना तेज़ मानी जा रही है। इसके चलते इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी और डेटा ट्रांसफर में एक क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेगा।
मंत्री पेम्मासानी ने भरोसा जताया कि भारत के पास कुशल इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की विशाल टीम है, जो देश को इस तकनीक में विश्व का अग्रणी बना सकती है। उन्होंने कहा, “भारत के पास रिसर्च और इनोवेशन के लिए पर्याप्त समय और संसाधन हैं, जो तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगे।”
6G तकनीक से न केवल मौजूदा उद्योगों में बड़ा बदलाव आएगा, बल्कि यह कई नई इंडस्ट्रीज को भी जन्म देगी। अनुमान है कि 2035 तक 6G भारत की अर्थव्यवस्था में 1 ट्रिलियन डॉलर का योगदान कर सकता है।
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14 मई को केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के जेवर में एक नए सेमीकंडक्टर प्लांट को मंजूरी दी है। यह प्रोजेक्ट HCL और Foxconn की साझेदारी में बनेगा और इसमें 3,706 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी कि यह प्लांट हर महीने 20,000 वेफर यूनिट्स को प्रोसेस करेगा, जिससे करीब 3.6 करोड़ चिप्स तैयार होंगी।
“ये चिप्स मोबाइल, लैपटॉप और ऑटोमोबाइल्स में इस्तेमाल होंगी और डिवाइस की स्क्रीन पर कंटेंट को बेहतरीन क्वालिटी में दिखाने में मदद करेंगी।” यह कदम भारत को न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि उसे एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी अहम साबित होगा।