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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए खरी-खरी सुना दी। जजों ने कहा कि लोगों को मुफ्त की सुविधाएं या खैरात बांटने के लिए राज्यों के पास पर्याप्त पैसे हैं लेकिन जब जजों को सैलरी और पेंशन देने की बात आती है तो सरकारें कहती हैं कि वित्तीय संकट है। कोई 2,100 तो कोई 2,500 रुपए देने का वादा कर रहा है लेकिन न्यायाधीशों को देने के लिए पैसे नहीं हैं।’’
हमने कहा, ‘‘यह समस्या सचमुच काफी गंभीर है। जिला व सत्र न्यायाधीश जब रिटायर होते हैं तो उन्हें 15,000 रुपए की बेहद मामूली पेंशन दी जाती है। कभी सरकारी तिजोरी खाली होने का बहाना करते हुए वेतन और पेंशन अटका भी दिए जाते हैं। देशवासियों को इंसाफ देनेवाले जजों के साथ इतनी बड़ी नाइंसाफी हो रही है। ऐसे में वे जाएं तो जाएं कहां? समझेगा कौन उनके दिल की जुबां!’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ‘‘नेताओं के लिए लाड़ली बहना, लाड़ला भाई हो सकता है लेकिन लाड़ला जज नहीं हो सकता! लुभावने वादों के मकड़जाल में फंसकर जनता भेड़-बकरी के समान नेताओं को भरपूर वोट दे सकती है लेकिन जज से तो सिर्फ जजमेंट ही मिल सकता है। कोई भ्रष्ट नेता यदि अदालत के कठघरे में आया तो जज उसकी तीखे शब्दों में जमकर खबर लेते हैं। नेताओं की दूकानदारी वोट के भरोसे चलती है। जजों को किसी के वोट की जरूरत नहीं पड़ती। नेताओं का जनता से प्रेम बनावटी और स्वार्थ की चाशनी में डूबा रहता है। रामायण में लिखा है- सुर, नर, मुनि सबकी यह रीति, स्वारथ लाग करें सब प्रीति।”
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ‘‘इसका मतलब यह है कि देवता, मनुष्य और ऋषि-मुनि सब अपने मतलब के लिए प्रेम जताते हैं। राज्यों के नेता खजाना खाली होने पर भी कर्ज या ओवरड्राफ्ट लेंगे लेकिन मतदाताओं को रेवड़ी जरूर बांटेंगे। मुफ्त में रकम मिले तो लोग गरीबी, बेरोजगारी के ज्वलंत मुद्दे उठाना बंद कर देते हैं। मुफ्त का अनाज मिलने पर आधा खाते और आधा बेचकर नकद पैसे जुटा लेते हैं। भ्रष्टाचारी और चोर किस्म के नेता को मुफ्तखोर मतदाता ही पसंद आते हैं। यह उनका आपसी एग्रीमेंट है जिसमें किसी जज का जजमेंट नहीं चलता।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा