कौन बनेगा महाराष्ट्र का सीएम (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: यद्यपि महाराष्ट्र में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिला है और वह अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम और समर्थ है लेकिन देखना होगा कि पार्टी हाईकमांड क्या तय करता है। महायुति को मजबूत बनाए रखने के उद्देश्य से कहीं ऐसा न हो कि पुरानी व्यवस्था को कायम रखते हुए एकनाथ शिंदे को ही पुन: मुख्यमंत्री बनाया जाए। दूसरा रास्ता यह है कि देवेंद्र फडणवीस बड़ी पार्टी के मुखिया के रूप में खुद सीएम बनें और शिंदे व अजीत पवार को खुश करने के लिए उनके कोटे को मंत्रियों की संख्या बढ़ा दें।
बीजेपी अनुशासनवाली पार्टी होने से पार्टी हाईकमांड ने जो तय कर लिया वह तुरंत लागू हो जाता है, उसमें कोई अगर-मगर नहीं होती। पिछली बार महायुति की मजबूती के लिहाज से पार्टी हाईकमांड ने देवेंद्र को उपमुख्यमंत्री बनने को कहा था। सीएम रह चुके नेता को डीसीएम बनना पड़ा क्योंकि शिवसेना तोड़कर आए शिंदे को सीएम बनाकर पुरस्कृत करना था। इसलिए इस समय अपनी 57 सीटों के बाद भी शिंदे सीएम बना दिए जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। महायुति की दीर्घकालीन एकजुटता के लिए 132 सीटों वाली बीजेपी इस तरह की कुरबानी दे सकती है। देवेंद्र उपमुख्यमंत्री रहते हुए भी ताकतवर रहते हैं। पिछली सरकार में अजीत पवार की कोई भी फाइल देवेंद्र के पास और फिर शिंदे के पास जाती थी।
इस चुनाव ने स्पष्ट कर दिया कि असली एनसीपी किसे माना जाए। अजीत पवार की राकां ने 55 सीटों पर चुनाव पर लड़कर 41 सीटें जीतीं अर्थात उनका स्ट्राइक रेट काफी बढि़या रहा। इसके विपरीत उनके चाचा शरद पवार ने महाविकास आघाड़ी में सबसे कम सीटें जीतीं। 86 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 10 सीटें जीतना शर्मनाक है। इससे यह भ्रम टूट गया कि अजीत सिर्फ विधायकों को तोड़कर महायुति में शामिल हुए थे और पार्टी कार्यकर्ताओं व जनता के बीच सीनियर पवार का अधिक प्रभाव था। चुनाव नतीजे के बाद तो निर्वाचन आयोग को भी मानना पड़ेगा कि घड़ी अजीत पवार की ही है और संभवत: अदालत भी यही राय जाहिर करे। शरद पवार जैसे काफी सीनियर और शातिर दिमाग नेता को देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने जमीनी वास्तविकता से अवगत करा दिया। मोदी को हटाने तक राजनीति में बना रहूंगा कहनेवाले शरद पवार को अब समझना होगा कि सचमुच उनके राजनीति से निवृत्त होने का वक्त आ गया है।
288 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने के लिए किसी पार्टी के पास 10 प्रतिशत या कम से कम 29 सीटें होना आवश्यक है लेकिन शिवसेना (उद्धव) 20 सीटें, कांग्रेस 16 सीटें और एनसीपी (शरद) 10 सीटें इस काबिल नहीं है कि अधिकृत रूप से नेता प्रतिपक्ष पद के लिए दावा कर सकें। बड़े जोश के साथ 101 सीटों पर चुनाव लड़नेवाली कांग्रेस को सिर्फ 16 सीटें मिल पाईं। इस राष्ट्रीय पार्टी को आत्मचिंतन करना होगा कि जिस महाराष्ट्र में उसने लंबे समय तक राज किया वहां उसकी हालत इतनी पतली कैसे हो गई।
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है, इसलिए अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र का चुनाव जीतना अधिक गौरवपूर्ण माना जाता है। जनता की उम्मीद है कि महायुति को इतना ज्यादा सीटें मिलने के बाद और केंद्र के सहयोग के साथ यहां की डबल इंजन की सरकार राज्य का तेजी से विकास करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी। विकास की गंगा पश्चिम महाराष्ट्र में दशकों तक बहाई जाती रही अब विदर्भ-मराठवाड़ा के भी अधूरे प्रोजेक्ट पूरे करने और नई परियोजनाएं शुरू करने की नई सरकार से आशा रहेगी। किसानों को भी न्याय की दरकार है।