(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, तथाकथित नामीगिरामी नेताओं को जब केंद्रीय जांच एजेंसियां गिरफ्तार कर लेती हैं तो उनकी मंजिल कहां होती है? वे किस मुकाम पर जाते हैं?’’
हमने कहा, ‘‘हर कोई जानता है कि बड़े लोग या तो जेल या फिर अस्पताल में जाते हैं। उनका यही सुनिश्चित ठिकाना होता है। वैसे अनिश्चितता तो आम आदमी के साथ होती है जो मंजिल की तलाश में भटकता है और गुनगुनाता है- मंजिल कहां, कहां रुकना है, ऊपरवाला जाने!’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आम आदमी की फिक्र केजरीवाल को करने दीजिए। जब बात करनी है तो फिश पांड की छोटी मछलियों की बजाय भ्रष्टाचार के महासागर में तैरनेवाले मगरमच्छों की चर्चा कीजिए। बताइए कि जब किसी दबंग या प्रभावशाली नेता की तकदीर उससे रूठ जाती है, उसकी किस्मत के सितारों को राहू-केतु घेर लेते हैं और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है तब क्या होता है?’’
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हमने कहा, ‘‘बड़े लोगों को जब हिरासत में लिया जाता है तो तुरंत ब्लडप्रेशर बढ़ने या दिल का दौरा पड़ने की शिकायत करते हैं। पुलिस भी घबरा जाती है कि कहीं कोई ऊंच-नीच या अनहोनी न हो जाए, इसलिए बड़े लोगों को जेलखाना रूपी बड़े घर ले जाने की बजाय सीधे अस्पताल भेज दिया जाता है। डॉक्टर तरह-तरह की मशीनों से उनके स्वास्थ्य की जांच करते हैं। वहां उन्हें पूरा आराम दिया जाता है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपको क्या लगता है? क्या सचमुच गिरफ्तारी के बाद बड़े लोगों का स्वास्थ्य अचानक खराब हो जाता है अथवा वे इस प्रकार का अभिनय करते हैं?’’
हमने कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है। इंसान हाड़-मांस का पुतला है। जब तक राजयोग रहता है, नेता प्रसन्न रहता है। उसके चेहरे पर लाली बनी रहती है। उसकी भुजाओं में बल कायम रहता है। गिरफ्तार होने के बाद वह निस्तेज या शिथिल हो जाता है। उसकी बदकिस्मती उसके सारे दबे-छिपे रोगों को सामने ले आती है। दबंगियत की जगह लाचारी घेर लेती है। सारी चालाकी धरी रह जाती है। बड़बोला नेता गुमसुम हो जाता है। ऐसे हालात में जेल की तकलीफों से बचने के लिए वह अस्पताल में रहना पसंद करता है। जेल के मनहूस पहरेदारों की बजाय किसी नर्स का मुस्कुराता चेहरा देखकर उसे हल्की सी तसल्ली मिलती है। वहां तैनात पुलिस के गुप्तचर निगरानी रखते हैं कि नेता से मिलने कौन और कितने लोग आए।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इसे देखते हुए यही कहना होगा- दुनिया बनानेवाले तूने कमी न की, अब किसको क्या मिला, ये मुकद्दर की बात है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा