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नवभारत डिजिटल डेस्क: देश के 3 राज्य, उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ ने 1 नवंबर 2025 में अपनी स्थापना की रजत जयंती मनाई। देश में समय समय पर नये राज्यों की मांग, इस तर्क के साथ उठती रहती है कि छोटे राज्य बेहतर प्रशासन वाले और अधिक सफल राज्य बनेंगे। लेकिन क्या इन तीनों राज्यों के 25 सालों के अनुभव से यह बात सच साबित होती है?
छत्तीसगढ़ में प्रचुर प्राकृतिक संपदाओं का फायदा स्थानीय लोगों को नहीं मिलता था। झारखंड की खनिज संपदा का लाभ बिहार के अन्य हिस्सों में चला जाता था। उत्तराखंड का शासन 600 किलोमीटर दूर लखनऊ से चलता था। तीनों राज्यों के निर्माण के पीछे समान भावना थी-विशालकाय राज्यों में क्षेत्रीय असंतुलन, राजधानी की दूरी, विकास की धीमी गति और स्थानीय संस्कृति एवं पहचान की उपेक्षा।
इन राज्यों की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य स्थानीय जन आकांक्षाओं की पूर्ति के साथ प्रशासनिक सुगमता, संसाधनों का न्यायपूर्ण उपयोग और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना भी था। क्या वे अपने निर्माण के उद्देश्यों को प्राप्त कर पाए हैं?
देश में बिजली उत्पादन में नौंवे स्थान पर पहुंचने वाले छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर 2001 में तकरीबन 6 फीसदी और गरीबी 50 प्रतिशत थी। वहीं मध्य प्रदेश में बेरोजगारी दर तब 2 प्रतिशत से कुछ अधिक और गरीबी दर 48 प्रतिशत थी आज छत्तीसगढ़ की बेरोजगारी दर आधी से ज्यादा घट गई है।
छत्तीसगढ़ में गरीबी दर सुधरकर 18 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि मध्य प्रदेश में गरीबी दर 21 फीसदी के आसपास ठिठकी हुई है तथा बेरोजगारी दर डेढ़ गुना बढ़ गई। एसजी हेल्थ इंडेक्स में छत्तीसगढ़ भारत के 10 टॉप राज्यों में है, जबकि मध्य प्रदेश बॉटम के 5 राज्यों में।
उत्तराखंड जब बना तो वहां 65 प्रतिशत घरों में बिजली थी, आज 99 प्रतिशत से अधिक घरों में बिजली है। सड़क संजाल 84 प्रतिशत तक विस्तारित हुआ। उत्तराखंड का बजट बीते 24 साल में 30 गुना तक बढ़ गया है। पर्यटन, मैन्यूफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में यहां जबरदस्त सुधार हुआ है। आय का 14 फीसद हिस्सा पर्यटन से आता है। यहां जीवन प्रत्याशा 71 बरस तक पहुंच गई है, तो यूपी में अभी यह 67 साल नहीं छू पा रही। अविभाजित उत्तर प्रदेश में गरीबी दर 41 प्रतिशत थी, जो अब 23 जबकि उत्तराखंड में गरीबी दर 9 फीसद के करीब है।
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शुरुआत में उत्तराखंडियों की प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष आय 15 हजार के करीब थी, आज यह बढ़कर दो लाख सत्ताईस हजार पर पहुंच गई है, राष्ट्रीय औसत आय से लगभग दोगुनी, जबकि उत्तर प्रदेश अभी एक लाख दस हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाया।
बिहार के दक्षिणी जिलों को काटकर बनाए झारखंड ने 25 बरसों में बहुत तरक्की की है, वह घरेलू पर्यटन में बिहार से आगे निकल गया है तथा खनन से वह देश में सबसे ज्यादा कमा रहा है। उसका पूंजीगत व्यय देश के औसत से डेढ़ गुना है। बजट 25 साल में 13 गुना बढ़ गया इसके अलावा झारखंड की इकोनॉमी ने तेजी से विकास किया है।
नवनिर्मित राज्यों ने ढाई दशकों में यह दिखाया कि वे बेरोजगारी पर अंकुश लगा सकते हैं साक्षरता दर भी बढ़ा सकते हैं, आय के नए साधन, संसाधन, स्रोत तलाशकर अपनी आर्थिकी को बल दे सकते हैं। मगर इसके बावजूद ऐसा नहीं है कि बड़े राज्यों से अलग हुए छोटे राज्य बहुत सफल हैं।
उत्तराखंड प्राकृतिक चुनौतियों से निबटना अभी नहीं सीख पाया है। पहाड़ी और तराई क्षेत्रों के बीच आय असमानता बड़ी चुनौती बनी हुई है। गांवों तक कनेक्टिविटी नहीं बन सकी है। छत्तीसगढ़ में आज भी 70 फीसद खेती वर्षा आधारित है।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा






