ट्रंप की सनक के खिलाफ उमड़ा जनरोष (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अदूरदर्शी तुगलकी नीतियों और बेतुके कदमों से दुनिया के विभिन्न देश ही नहीं, खुद अमेरिकी जनता हैरान-परेशान है. ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का उनका खोखला नारा देशवासियों का जीना मुहाल करने लगा है. ट्रंप और उनके अरबपति मित्रों व सलाहकारों का समूह मनमानी पर उतर आया है. प्रशासनिक खर्च में कटौती के नाम पर बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छटनी, कितने ही विभाग बंद कर देना या उनका बजट रोकना, टैरिफ नीतियों से विश्व व्यापार को चौपट करना और महंगाई बढ़ा देना ऐसे कदम हैं जिनसे अमेरिका के सभी 50 राज्यों में असंतोष का ज्वालामुखी फूट पड़ा है।
पद संभालने के बाद से अपने कार्यकाल के ढाई महीने में ही ट्रंप ने अपनी तानाशाही नीतियों से लोकतंत्र को झकझोर दिया. अमेरिका की मुख्य भूमि के 48 राज्यों के अलावा हवाई व अलास्का जैसे 2 राज्यों में भी लाखों प्रदर्शनकारी सड़क पर उतर आए. 2017 के महिला मार्च और पुलिस क्रूरता के खिलाफ 2020 में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ प्रदर्शन के बाद यह हाल के वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी जनआक्रोश की अभिव्यक्ति है।
मनमानी टैरिफ वृद्धि, अवैध प्रवासियों का अचानक बड़े पैमाने पर अपमानजनक तरीके से निर्वासन, संघीय विभागों और नौकरियों में भारी छंटनी कर हजारों लोगों को बेरोजगार करना, स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों में कटौती, ट्रांसजेंडर अधिकारों पर प्रतिबंध ने जनमत को उद्वेलित कर दिया. इस वजह से 50 राज्यों के लाखों आंदोलनकारियों का जनसैलाब ‘हैंडस ऑफ’ विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर पड़ा. दक्षिणी राज्य अटलांटा में तो प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि ट्रंप पर महाभियोग चलाओ, मस्क को निर्वासित करो. आंदोलनकारियों की प्रमुख मांगें है कि ट्रंप प्रशासन में बना हुआ अरबपतियों का कब्जा हटाएं, भष्टाचार समाप्त करें, मेडिकेयर, सोशल सिक्योरिटी तथा अन्य कार्यक्रमों के लिए फंड की कटौती को रद्द किया जाएं. ट्रांसजेंडरों, अप्रवासियों पर हमले रोके जांए. डाउन साइजिंग के नाम पर बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी छीनी गई जिसे बहाल किया जाए।
प्रदर्शनकारियों के निशाने पर राष्ट्रपति ट्रंप और उनके मित्र एलन मस्क थे. उन्होंने फाइट दि ओलिगार्की (कुलीन तंत्र से संघर्ष) के नारे लगाए. मैनहटन, पोर्टलैंड, लास एंजिल्स, एंकोरेज अलास्का सभी ओर 1200 स्थानों पर प्रदर्शन हुए. इसमें श्रम संगठन, सिविल राइट्स संगठन, चुनावी कार्यकर्ता, वकील, पूर्व सैनिक सभी शामिल थे. मानवाधिकार समूह के नेता केली राबिन्सन ने कहा कि ट्रंप प्रशासन का हमला सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत हो उठा है. वे हमारी पुस्तकों को प्रतिबंधित करने, हमारे डाक्टरों, शिक्षकों को अपराधी करार देने, परिवारों को बरबाद करने में लगे हैं. यूनिवर्सिटी फंड रोककर शिक्षा को नुकसान पहुंचा रहे है. एचआईवी की रोकथाम के फंड में भी कटौती की गई है. महंगाई बढ़ने, शेयर मार्केट में गिरावट और मंदी की आहट पर भी प्रदर्शनकारियों ने चिंता जताई।
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व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया बिल्कुल साफ है. वह हमेशा सही हितग्राहियों के लिए सोशल सिक्योरिटी, मेडीकेयर कायम रखेंगे. यह सुविधाएं अवैध विदेशियों को नहीं मिलेंगी. ये बाहरी लोग हमारी योजनाओं को खोखला कर रहे हैं और बुजुर्ग अमेरिकियों से उनका हक छीन रहे हैं. सारी रैलियां शांतिपूर्ण रहीं तथा किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा